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Download Solution PDF'दिवस का अवसान समीप था, गगन था कुछ लोहित हो चला' - पंक्तियाँ किसकी है?
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DSSSB TGT Hindi Male Subject Concerned - 28 Aug 2018 Shift 3
Answer (Detailed Solution Below)
Option 4 : अयोध्यासिंह उपाध्याय हरिऔध
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DSSSB TGT Hindi Female 4th Sep 2021 Shift 2
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Detailed Solution
Download Solution PDF- सही उत्तर "अयोध्यासिंह उपाध्याय हरिऔध'' है।
- "'दिवस का अवसान समीप था, गगन था कुछ लोहित हो चला'".... पंक्तियों का अर्थ:
- आसमान में लालिमा फैलने लगी थी।
- पेड़ों की फुनगियों पर सूरज की आखिरी किरणें विराजमान थीं।
- रचना - प्रियप्रवास (1914)
- रचयिता - अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध
- कुल सर्ग - 17
- यह पंक्तियां प्रथम सर्ग से ली गईं हैं।
- प्रकृति वर्णन।
- खड़ी बोली हिंदी का प्रथम महाकाव्य।
- कथा वस्तु - श्रीमद् भागवत गीता का दशम स्कंध
- अन्य रचनाएं -
- पारिजात - 1937
- वैदेही वनवास - 1941
- कृष्ण शतक - 1882
- चोखे चौपदे -1932
- रस कलस - 1931
- आधुनिक काल का सूरदास - गणपति चन्द्र गुप्त के अनुसार
- प्रिय प्रवास पर मांगला प्रसाद पारितोषिक
Last updated on May 12, 2025
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