संस्कृत MCQ Quiz - Objective Question with Answer for संस्कृत - Download Free PDF

Last updated on Jun 12, 2025

Latest संस्कृत MCQ Objective Questions

संस्कृत Question 1:

कल्पसूत्राणामुचितः क्रमः चीयताम् 

  1. श्रौतसूत्रम्, धर्मसूत्रम् गृह्यसूत्रम् शुल्वसूक्तम्
  2. श्रौतसूत्रम्, गृह्मसूत्रम् धर्मसूत्रम् शुल्वसूत्रम्
  3. गृह्मसूत्रम्, धर्मसूत्रम् शुल्वसूत्रम् श्रोतसूत्रम्
  4. उपर्युक्तेषु एकस्मात् अधिकम्
  5. उपर्युक्तेषु कश्चन अपि नास्ति

Answer (Detailed Solution Below)

Option 2 : श्रौतसूत्रम्, गृह्मसूत्रम् धर्मसूत्रम् शुल्वसूत्रम्

संस्कृत Question 1 Detailed Solution

प्रश्नानुवाद - कल्प सूत्र का उचित क्रम चुनें।

स्पष्टीकरण - 

कल्पसूत्र का उचित क्रम है - श्रौतसूत्रम्, गृह्मसूत्रम्, धर्मसूत्रम्, शुल्वसूत्रम्।

कल्पसूत्र -

कल्प वेद के छह अंगों (वेदांगों) में एक है जो कर्मकाण्डों का विवरण देता है।इन कल्पसूत्रों का प्रधान प्रतिपाद्य विषय है संस्कारों, यज्ञों और वर्णाश्रम धर्मों की व्याख्या, विधिविधान तथा अनुष्ठानचर्या। कल्प का तात्पर्य है - 'वेद (संहिता, ब्राह्मण, आरण्यकादि) विहित कर्मो, अनुष्ठानों का क्रमपूर्वक कल्पना करनेवाला शास्त्र या ग्रंथ'। "कल्पो वेदविहितानां कर्मणमानुपूर्व्येण कल्पनाशास्त्रम्" (ऋग्वेदप्रातिशाख्य की वर्गद्वयवृत्ति)। कल्पसूत्रों का तीन मुख्य वर्गो में विभाजन किया गया है– (१) श्रौतसूत्र, (२) गृह्यसूत्र और (३) धर्मसूत्र। इसके अतिरिक्त (४) शुल्बसूत्र भी एक भेद हैं।

  • श्रौतसूत्र - श्रौतसूत्र में मन्त्र-संहिता के कर्मकाण्ड को स्पष्ट किया जाता है।
  • गृह्यसूत्र - गृह्यसूत्र में कुलाचार का वर्णन होता है।
  • धर्मसूत्र - धर्मसूत्र में धर्माचार का वर्णन है।
  • शुल्बसूत्र - शुल्बसूत्र में ज्यामिति आदि विज्ञान वर्णित है।

संस्कृत Question 2:

वेदाङ्गानामुचितं क्रमं चिनुत

  1. शिक्षा, कल्‍प, व्याकरणं, निरुक्तम्, छन्दः, ज्योतिष्
  2. व्याकरणम्, शिक्षा, कल्पः निरुक्तम् छन्दः ज्योतिष्
  3. ज्योतिष्, छन्दः, निरुक्तम्, कल्पः, व्याकरणम्, शिक्षा
  4. उपर्युक्तेषु एकस्मात् अधिकम्
  5. उपर्युक्तेषु कश्चन अपि नास्ति

Answer (Detailed Solution Below)

Option 1 : शिक्षा, कल्‍प, व्याकरणं, निरुक्तम्, छन्दः, ज्योतिष्

संस्कृत Question 2 Detailed Solution

प्रश्नार्थ - वेदांगो का उचित क्रम चुनिए-

वेदाङ्ग -

वेदाङ्ग की कुल संख्या 6 है, जिसका क्रम इस प्रकार है - शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द और ज्योतिष।

मुण्डकोपनिषद में आता है- 

तस्मै स हो वाच। द्वै विद्ये वेदितब्ये इति ह स्म यद्ब्रह्म विद्यौ वदंति परा चैवोपरा च॥ तत्रापरा ॠग्वेदो यजुर्वेद: सामवेदोऽर्थ वेद: शिक्षा कल्पो व्याकरणं निरुक्तं छन्दोज्योतिषमिति। अथ परा यथा तदक्षरमधिगम्यते॥

अर्थात्, मनुष्य को ज्ञातव्य दो विद्याएं हैं - परा और अपरा। उनमें चारों वेदों के शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छंद, ज्योतिष - ये सब 'अपरा' विद्या हैं तथा जिससे वह अविनाशी परब्रह्म तत्त्व से जाना जाता है, वही 'परा' विद्या है।'

छः वेदाङ्ग -

  1. शिक्षा - वैदिक वाक्यों के स्पष्ट उच्चारण हेतु इसका निर्माण हुआ। वैदिक शिक्षा सम्बंधी प्राचीनतम साहित्य 'प्रातिशाख्य' है।
  2. कल्प - वैदिक कर्मकाण्डों को सम्पन्न करवाने के लिए निश्चित किए गये विधि नियमों का प्रतिपादन 'कल्पसूत्र' में किया गया है।
  3. व्याकरण - इसके अन्तर्गत समासों एवं सन्धि आदि के नियम, नामों एवं धातुओं की रचना, उपसर्ग एवं प्रत्यय के प्रयोग आदि के नियम बताये गये हैं। पाणिनि की अष्टाध्यायी प्रसिद्ध व्याकरण ग्रंथ है।
  4. निरूक्त - शब्दों की व्युत्पत्ति एवं निर्वचन बतलाने वाले शास्त्र 'निरूक्त' कहलातें है। क्लिष्ट वैदिक शब्दों के संकलन ‘निघण्टु‘ की व्याख्या हेतु यास्क ने 'निरूक्त' की रचना की थी, जो भाषा शास्त्र का प्रथम ग्रंथ माना जाता है।
  5. छन्द - वैदिक साहित्य में मुख्य रूप से गायत्री, त्रिष्टुप, जगती, वृहती आदि छन्दों का प्रयोग किया गया है। पिंगल का छन्दशास्त्र प्रसिद्ध है।
  6. ज्योतिष - इसमें ज्योतिष शास्त्र के विकास को दिखाया गया है। इसकें प्राचीनतम आचार्य 'लगध मुनि' है।

संस्कृत Question 3:

कस्य वेदस्य किमपि आरण्यकम्‌ नास्त्येव? 

  1. सामवेदस्य
  2. अर्थववेदस्य
  3. ऋग्वेदस्य
  4. उपर्युक्तेषु एकस्मात् अधिकम्
  5. उपर्युक्तेषु कश्चन अपि नास्ति

Answer (Detailed Solution Below)

Option 2 : अर्थववेदस्य

संस्कृत Question 3 Detailed Solution

अनुवाद - किस वेद का आरण्यक नहीं है?
 
स्पष्टीकरण - अथर्ववेद का आरण्यक नहीं होता। 
 
Key Points
 
आरण्यक 
  • व्युत्पत्ति की दृष्टी से आरण्यक शब्द अरण्य शब्द में वृञ् प्रत्यय के योग से निष्पन्न हुआ है। 
  • इसका अर्थ है अरण्य में होनेवाला वाला। 
  • 'अरण्ये भवमिति आरण्यकम्' ऐसे आरण्य का अर्थ बताया जाता है। 
  • आरण्यकों का मुख्य विषय यज्ञीय अनुष्ठानों के आध्यात्मिक मीमांसा है।
  • ब्रह्मचर्य का निरन्तर अनुसरण करने वाले आरण्यकों का अध्ययन करने के अधिकारि हैं। 
 
हर वेद का एक या अधिक आरण्यक होता है। अथर्ववेद का कोई आरण्यक उपलब्ध नहीं है। आरण्यकों का वेदानुसार परिचय इस प्रकार है-
  • ऋग्वेद
    • ऐतरेय आरण्यक
    • कौषीतकि आरण्यक या शांखायन आरण्यक
  • सामवेद
    • तवल्कार (या जैमिनीयोपनिषद्) आरण्यक
    • छान्दोग्य आरण्यक
  • यजुर्वेद
    • शुक्ल
    • वृहदारण्यक
  • कृष्ण
    • तैत्तिरीय आरण्यक
    • मैत्रायणी आरण्यक
  • अथर्ववेद
    • यद्यपि अथर्ववेद का पृथक् से कोई आरण्यक प्राप्त नहीं होता है, तथापि उसके गोपथ ब्राह्मण में आरण्यकों के अनुरूप बहुत सी सामग्री मिलती है।

संस्कृत Question 4:

'आर्चज्योतिष' इत्यस्य ज्योतिषवेदांगस्य प्रणेता कः ?

  1. लगधाचार्यः
  2. सुरेश्वराचार्यः
  3. शांखायनाचार्यः
  4. उपर्युक्तेषु एकस्मात् अधिकम्
  5. उपर्युक्तेषु कश्चन अपि नास्ति

Answer (Detailed Solution Below)

Option 1 : लगधाचार्यः

संस्कृत Question 4 Detailed Solution

अनुवाद - 'आर्चज्योतिष' इस वेदाङ्ग के प्रणेता कौन हैं?
 
स्पष्टीकरण - 'आर्चज्योतिष' इस वेदाङ्ग के प्रणेता लगधाचार्य हैं।
 
Key Points
  • लगध मुनि का आर्चज्योतिषवेदाङ्ग ज्योतिष का ग्रन्थ है।
  • इसे सर्वाधिक प्राचीन ज्योतिष ग्रन्थ माना जाता है।
  • विविध वेदों के विविध ज्योतिष ग्रन्थ हैं।
 
१) ऋग्वेद - आर्चज्योतिषम्, प्रणेता - लगधाचार्य, कुल पद्य - ३६
२) यजुर्वेद - याजुषज्याेतिषम्, प्रणेता - लगधाचार्य, कुल पद्य - ४४
३) अथर्ववेद - आथर्वणज्याेतिषम्, प्रणेता - ज्ञात नहीं, कुल पद्य - १६२
 
सामवेद के ज्योतिष ग्रन्थ के विषय में जानकारी उपलब्ध नहीं।

संस्कृत Question 5:

अग्नेर्निर्वचनमिदम् नास्ति 

  1. अङ्गगयति गमयति
  2. अग्रणी भवति
  3. अड्गं नयति सन्नमानः
  4. उपर्युक्तेषु एकस्मात् अधिकम्
  5. उपर्युक्तेषु कश्चन अपि नास्ति

Answer (Detailed Solution Below)

Option 1 : अङ्गगयति गमयति

संस्कृत Question 5 Detailed Solution

प्रश्न का हिंदी भाषांतर : यास्कसंमत अग्नि का निर्वचन क्या नहीं है?

अग्नि शब्द का निर्वचन:

'अग्निः कस्मात्?'

  • अग्रणीर्भवति' - यह अग्रणी होता है यह मनुष्यों का इतना अधिक उपकार करता है कि सभी देवों में प्रमुख हो जाता है, अतः अग्नि कहलाता है।
  • 'अग्र यज्ञेषु प्रणीयते' - यज्ञ सम्बन्धी कार्यों में यह सबसे पहले लाया जाता है। यज्ञों में सबसे आगे लाये जाने के कारण अग्रणी होता है, अतः अग्नि कहलाता है।
  • अङ्गं नयति सन्नममानः - यह तृण, काष्ठ इत्यादि को आश्रय देता हुआ भी उसे अपना अङ्ग बना लेता है, अतः अग्नि कहलाता है। जिस भी किसी पदार्थ को अग्नि में रखा जाता है उसे जलाकर अथवा बिना जलाये अपने समान सन्तप्त अथवा दिप्तिमान् बना देता है। अङ्ग नयतीति अङ्गनी अग्नि ।
  • 'अक्नोपनो भवतीति स्थौलाष्ठीविः' - स्थौलाष्टीवि आचार्य के अनुसार यह अक्नोपम (रूखा या शुष्क) बना देने वाला होता है, अतः अग्नि कहलाता है। इस प्रकार नञ् पूर्वक स्नेहार्धक वनुषी धातु से किन' प्रत्यय होकर अहनी - अग्नि बनता है।
  • 'त्रिभ्य आख्यातेा जायत इति शाकपूणि इतात् अक्तात् दग्धाद्वा नीतात् - शाकपूणि आचार्य के अनुसार 'इण्' 'अज्जू' अथवा 'दह्' तथा 'णीञ्' इन तीनों धातुओं से अग्नि शब्द बना है, क्योंकि अग्नि गतिशील, पदार्थव्यञ्जक दाहक और गतिप्रदान करने वाला है। इण् धातु से अकार 'अञ्जू' या 'दह्' धातु से दकार और 'णीञ्' से 'नी' लेकर अग्नि शब्द निष्पन्न होता है।

 

अतः स्पष्ट है, 'अङ्गगयति गमयतियह अग्नि का निर्वचन नहीं है।

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निम्नलिखित में से कौन-सा ग्रन्थ ‘चतुर्विंशतिसाहस्रीसंहिता’ के नाम से ख्यात है?

  1. रामायण
  2. महाभारत
  3. ब्रह्माण्डपुराण
  4. बृहदारण्यकोपनिषद्

Answer (Detailed Solution Below)

Option 1 : रामायण

संस्कृत Question 6 Detailed Solution

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‘चतुर्विंशतिसाहस्रीसंहिता’ को तोड़कर देखें तो ‘चतुर्विंशति + साहस्री + संहिता’ प्राप्त होता है। जिनके अर्थ इस प्रकार है-

  • चतुर्विंशति- चौबीस
  • साहस्री- हजार
  • संहिता- एक साथ हो।

अर्थात् चौबीस हजार श्लोक जहाँ हो, रामायण में चौबीस हजार श्लोक है, अतःउसे ‘चतुर्विंशतिसाहस्रीसंहिता’ कहेंगे। 

Key Points

  • विद्वानों में एक और प्रसिद्धी है कि प्रत्येक एक हजार श्लोक के पश्चात् इसमें गायित्री मन्त्र का एक वर्ण आता है।
  • रामायण का विभाजन सात काण्डों में हुआ है-
  1. बालकाण्ड- 77 सर्ग
  2. अयोद्ध्याकाण्ड- 129 सर्ग
  3. अरण्यकाण्ड- 75 सर्ग
  4. किष्किन्धाकाण्ड- 67 सर्ग
  5. सुन्दरकाण्ड- 68 सर्ग
  6. लङ्काकाण्ड (युद्धकाण्ड)- 128 सर्ग
  7. उत्तरकाण्ड- 111 सर्ग

Additional Information

  • महाभारत में एक लाख श्लोक हैं इसलिये इसे ‘शत्साहस्रीसंहिता’ भी कहते हैं।

माहेश्वर सूत्रों की संख्या हैं

  1. 14
  2. 13
  3. 15
  4. 10

Answer (Detailed Solution Below)

Option 1 : 14

संस्कृत Question 7 Detailed Solution

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स्पष्टीकरण:- पाणिनी ने अपने अष्टाध्यायी में १४ माहेश्वर सूत्र बताये है। वह इसप्रकार हैं-

१४ माहेश्वर सूत्र:- १. अइउण्। २. ऋऌक्। ३. एओङ्। ४. ऐऔच्। ५. हयवरट्। ६. लण्। ७. ञमङणनम्। ८. झभञ्। ९. घढधष्। १०. जबगडदश्। ११. खफछठथचटतव्। १२. कपय्। १३. शषसर्। १४. हल्।

इन माहेश्वर सूत्र को प्रत्याहार सूत्र के साथ 'चतुर्दश सूत्र' से भी जाने जाते है।

अतिरिक्त जानकारी

उत्पत्ति:- एक आख्यायिका के अनुसार पाणिनि को यह सूत्र भगवान शङ्कर से प्राप्त हुए।

नृत्तावसाने नटराजराजो ननाद ढक्कां नवपञ्चवारम्

उद्धर्तुकामः सनकादिसिद्धान् एतद्विमर्शे शिवसूत्रजालम् ॥

अर्थ:- "नृत्य (ताण्डव) के अवसान (समाप्ति) पर नटराज (शिव) ने सनकादि ऋषियों की सिद्धि और कामना का उद्धार (पूर्ति) के लिये नवपंच (चौदह) बार डमरू बजाया। इस प्रकार चौदह शिवसूत्रों का ये जाल (वर्णमाला) प्रकट हुयी।"

इस तरह से इन माहेश्वर सूत्रोंकी उत्त्पत्ति है। इन्हे शिवसूत्र भी कहते हैं। इन्ही १४ शिवसूत्रोंको पाणिनि ने भगवान शङ्कर से प्राप्त किया और उनसे अष्टाध्यायी के प्रत्याहार बनाये। इसलिए इन सूत्रों को प्रत्याहार विधायक सूत्र भी कहते हैं।

"काव्यादर्श" के रचयिता हैँ

  1. भास
  2. भारवि
  3. शुद्रक
  4. दण्डी

Answer (Detailed Solution Below)

Option 4 : दण्डी

संस्कृत Question 8 Detailed Solution

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'काव्यादर्श' अलंकारशास्त्राचार्य दंडी द्वारा रचित संस्कृत काव्यशास्त्र संबंधी प्रसिद्ध ग्रंथ है।
काव्यादर्श
  • काव्यादर्श एक रीतिसम्प्रदाय का साहित्यशास्त्र सम्बन्धी ग्रन्थ है।
  • काव्यादर्श मे तीन परिच्छेद मिलते है।
  • प्रथम परिच्छेद - काव्य परिभाषा, काव्यभेद, महाकाव्यादि के लक्षण आदि।
  • द्वितीय परिच्छेद - 35 अर्थालङ्कारो के भेद - प्रभेद के साथ लक्षण उदाहरनादि।
  • तृतीय परिच्छेद - यमक का विवेचन है।साथ ही, चित्रकाव्य, स्वरनियम, स्थाननियम, वर्णनियम तथा प्रहेलिका इत्यादि के लक्षण एवं उदाहरण भी दे दिए गए हैं।
  • ग्रंथ के अन्त में काव्यदोषों का परिचय है।

दण्डी 

  • दंडी संस्कृत के प्रसिद्ध साहित्यकार थे।
  • जो छ्ठी शताब्दी के अंत और सातवीं शताब्दी के प्रारंभ में सक्रिय थे।
  • दंडी की की तीन रचनाएँ प्रसिद्ध हैं- 1. ‘काव्यादर्श’, 2. ‘दशकुमार चरित’ और 3. ‘अवंतिसुन्दरी कथा’

'उच्चरति' शब्द में जुड़ा उपसर्ग है-

  1. उ उपसर्ग
  2. उप उपसर्ग
  3. उत् उपसर्ग
  4. आ उपसर्ग

Answer (Detailed Solution Below)

Option 3 : उत् उपसर्ग

संस्कृत Question 9 Detailed Solution

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धात रूपों तथा धातुओ से निष्पन्‍न शब्‍दरूपों से पूर्व प्रयुक्त होकर उनके अर्थ का परिवर्तन करने वाले शब्‍दों को उपसर्ग कहते है -

"उपसर्गेण धात्वर्थो बलादन्यत्र नीयते।

प्रहाराहार-संहार-विहार-परिहारवत्॥"

उदाहरण 

उपसर्ग  निर्मित शब्द 
वि विराम, विश्राम 
परि परिहार, परिपूर्ण 
प्र प्रगति, प्रतिष्ठा

उत्

उत्थान, उद्घाटन 

उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट होता है कि 'उच्चरति' पद में "उत्" उपसर्ग प्रयुक्त है।Hintसंस्कृत में कुल 22 उपसर्ग माने गये हैं-

उपसर्ग

अर्थ

उदाहरण

प्र

प्रकृष्ट

प्रगति, प्रतिष्ठा

परा

निषेध, विपरित

पराजितं पराभवति

अप

न्यूनता या हीनता

अपकरोति, अपहरति

सम्

अच्छा

संगच्छति, संस्करोति

अपि ढ़कना अप्यस्ति

अनु

अनुकरण

अनुगमनं अनुकरोति

अव

निचे

अवगच्छति, अवजानन्ति

निर्

निषेध

निर्गच्छति, निराकरोति

निस्

निषेध

निष्कारणं, निस्सरति

दुस्

कठिन, दुष्कर

दुष्टः, दुष्प्रयोजन

दुर्

कठिन, दुष्कर

दुर्गति, दुर्बोध्य

वि

विशिष्ट

विजयते, विगत

आङ्

सिमा

आजिवनम्, आकण्ठम्

नि

निचे

निगदति, निपतति

अधि

प्रधानता या आधार

अधिराजते, अधिहरि

अति

अतिशय

अत्यन्त, अत्याचारः

सु

अच्छा

स्वागतं, सुशोभते

उत्

ऊँचा

उत्कर्षं, उत्पतति

अभि

समीप

अभ्यागतः, अभ्यासः

प्रति

विपरित

प्रत्युपकारः, प्रत्यवदत्

परि

चारो ओर

पर्यावरणं, परिवर्तनम्

उप

समीप

उपकार, उपहार

‘श्रीमद्भगवद्गीता’ में कुल कितने अध्याय हैं?

  1. 15 (पन्द्रह)
  2. 18 (अठारह)
  3. 20 (बीस)
  4. 16 (सोलह)

Answer (Detailed Solution Below)

Option 2 : 18 (अठारह)

संस्कृत Question 10 Detailed Solution

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श्रीमद्भगवद्गीता’ महाभारत के भीष्मपर्व में युद्ध के पूर्व कृष्ण द्वारा अर्जुन को दिया गया उपदेश है। जो कुल अठारह (18)’ अध्याय में वर्णित है।

Additional Information

विशेष:- महाभारत में अठारह संख्या अत्यंत महत्वपूर्ण है-

  • महाभारत के अद्ध्यायों की संख्या- 18
  • युद्ध के दिनों की सन्ख्या- 18
  • श्रीमद्भगवद्गीता के अद्ध्यायों की संख्या- 18
  • उपगीता के अद्ध्यायों की संख्या- 18

अतः स्पष्ट है कि ‘श्रीमद्भगवद्गीता’ में कुल ‘अठारह (18)’ अध्याय में वर्णित है।

मातृ शब्द का पंचमी विभक्ति का एकवचन रूप है-

  1. मातृस्य
  2. मातातः
  3. मातात्
  4. मातुः

Answer (Detailed Solution Below)

Option 4 : मातुः

संस्कृत Question 11 Detailed Solution

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'मातृ' यह प्रातिपदिक 'ऋकारान्त स्त्रीलिंग शब्द है। इसके विभिन्न विभक्ति-वचन में रूप निम्नलिखित हैं-

विभक्ति

एकवचन

द्विवचन

बहुवचन

प्रथमा

माता

मातरौ

मातरः

द्वितीया

मातरम्

मातरौ

मातृ

तृतीया

मात्रा

मातृभ्याम्

मातृभिः

चतुर्थी

मात्रे

मातृभ्याम्

मातृभ्यः

पन्चमी

मातुः

मातृभ्याम्

मातृभ्यः

षष्ठी

मातुः

मात्रोः

मातृणाम्

सप्तमी

मातरि

मात्रोः

मातृषु

सम्बोधन

हे माता!

हे मातरौ!

हे मातरः!

 

उपर्युक्त सारणी के अनुसार यह स्पष्ट होता है कि 'मातृ' शब्द की पञ्चमी विभक्ति एकवचन में 'मातुः' रूप होता है।

Additional Information

मातृ की तरह दुहितृ, स्वसृ, ननादृ यह कुछ अन्य 'ऋकारान्त' स्त्रीलिंग पद है।

'नदी' शब्द का सप्तमी, एकवचन रूप है 

  1. नदीयाम् 
  2. नद्याम् 
  3. नदौ 
  4. नदायाम्

Answer (Detailed Solution Below)

Option 2 : नद्याम् 

संस्कृत Question 12 Detailed Solution

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नदी’ का अर्थ ‘नदी’ या 'सरिता' होता है। ‘नद्याम् शब्द रूप – ईकारान्त स्त्रीलिङ्ग सप्तमी एकवचन’ है।

नदी’ शब्द का प्रयोग निम्नलिखित है:-

विभक्ति

एकवचन

द्विवचन

बहुवचन

प्रथमा

नदी

नद्यौ

नद्यः

द्वितीया

नदीम्

नद्यौ

नदीः

तृतीया

नद्या

नदीभ्याम्

नदीभिः

चर्तुथी

नद्यै

नदीभ्याम्

नदीभ्यः

पन्चमी

नद्याः

नदीभ्याम्

नदीभ्यः

षष्ठी

नद्याः

नद्योः

नदीनाम्

सप्तमी

नद्याम्

नद्योः

नदीषु

सम्बोधन

हे नदि!

हे नद्यौ!

हे नद्यः!

'दास्यति' क्रियापद में लकार है

  1. लट्
  2. लोट्
  3. लृट्
  4. विधिलिड्.

Answer (Detailed Solution Below)

Option 3 : लृट्

संस्कृत Question 13 Detailed Solution

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स्पष्टीकरण - 'दास्यति' का अर्थ होता है, 'देगा/देगी' जो भविष्यकाल है।

दा’ धातु से ‘लृट् लकार’ के विविध वचनों और पुरूषों में प्राप्त रूप इस प्रकार है-

पुरूष

एकवचन

द्विवचन

बहुवचन

प्रथमपुरूष

दास्यति

दास्यतः

दास्यन्ति

मध्यमपुरूष

दास्यसि

दास्यथः

दास्यथ

उत्तमपुरूष

दास्यामि

दास्यावः

दास्यामः

 

अतः स्पष्ट है कि 'दास्यामि' इस पद में मूलधातु 'दा' धातु का 'लृट् लकार' प्रथम पुरुष एकवचन है।

Hint

लृट् लकार - 'लृट् शेषे च' सामान्य भविष्य काल के लिए लृट् लकार प्रयुक्त होता है। 

जैसे - वह पढेगा - सः पठिष्यति

लृट् लकार क सूत्र = धातु + स्य + लट्लकार प्रत्यय

उदा.

  • पठिष्यति = पठ् + स्य + ति
  • लेखिष्यति = लिख् + स्य + ति
  • भविष्यति = भू-भव् + स्य + ति
  • दास्यत्ति = दा + स्य + ति

Additional Information 

लकार - संस्कृत में दस लकारों का वर्णन मिलता है -

लकारों के नाम तथा अर्थ - 

i)- लट् लकार - 'वर्तमाने लट्' लट् लकार वर्तमान काल अर्थ में होता है। यथा - राम जाता है - रामः गच्छति

ii)- लोट् लकार - 'आशिषि लिङ् लोटौ' लोट् लकार का प्रयोग विविध अर्थों में होता है - 

  • आज्ञा - तुम जाओ - त्वं गच्छ
  • प्रार्थना - आप आईये - भवान् आगच्छ
  • अनुमति - मै क्या करू - अहं किं करवाणि
  • आशीर्वाद - दीर्घायु हो - दीर्घायु भव

iii)- लङ् लकार - 'अनद्यतने लङ्' अनद्यतन भूत काल अर्थ में लङ् लकार का प्रयोग होता है। उसने लिखा - सः अलिखत्

iv)- विधिलिङ्ग लकार - 'विधिनिमन्त्रणामन्त्रणाधीष्टसंप्रश्नप्रार्थनेषु लिङ्विधिलिङ्ग लकार का निम्न अर्थों में प्रयोग होता है - 

  • विधि - सत्य बोलना चाहिए - सत्यं ब्रूयात्। 
    • छात्राओं को पढना चाहिए - छात्राः पठेयुः
  • निमन्त्रण - आप आज यहाँ भोजन करें - भवान् अद्य अत्र भक्षयेत्
  • आदेश - तुम पुस्तक पढो - त्वं पुस्तकं पठे
  • प्रश्न - मुझे क्या पढना चाहिए - अहं किम् पठेयम्
  • इच्छा अथवा प्रार्थना - तुम सुखी रखो - यूयं सुखी भवेत

v)- लृट् लकार - 'लृट् शेषे च' सामान्य भविष्य काल के लिए लृट् लकार प्रयुक्त होता है। यथा - वह पढेगा - सः पठिष्यति

vi)- लुट् लकार - 'अनद्यतने लुट्' लुट् लकार का प्रयोग अनद्यतन भविष्य के लिए होता है। यथा - वह पढेगा - सः पठिता

vii)- लृङ्लकार - जहाँ एक क्रिया दूसरी क्रिया पर आश्रित होता है वहाँ हेतुमत् भूत काल अर्थात् लृङ् लकार होता है। यथा - यदि वह पढता तो विद्वान् हो जाता - यदि सः पठिष्यत् तर्हि विद्वान् अभविष्यत्

viii)- आशीर्लिङ् लकार - आशीर्वाद अर्थ में आशीर्लिङ् लकार का प्रयोग होता है। यथा - वह पढे - सः पठ्यात्

ix)- लुङ् लकार - सामान्य भूत काल में लुङ् लकार का प्रयोग होता है। यथा - उसने पढा - सः अपाठीत्

x)- लिट् लकार - 'परोक्षेलिट्' लोट् लकार परोक्ष भूत  काल अर्थ में होता है। यथा - उसने पढा - सः पपाठ

Comprehension:

निर्देशः अधोलिखितं गद्यांशं पठित्वा तदाधारितप्रश्नानां विकल्पात्मकोत्तरेभ्यः उचिततमम् उत्तरं चित्वा लिखत।

जीवनस्य मूल्यम् अर्थात् ते मानवीयगुणाः ये मानवजीवनम् उत्कर्षं प्राप्यन्ति। तेषु प्रमुखाः दया-सत्य-अहिंसा-अस्तेय-अक्रोधादयः सन्ति। मानवजीवनस्य उत्थानाय एतेषां महती आवश्यकता भवति। मनुष्यः वास्तवः मनुष्यः तदैव भवति, यदा सः एतैः गुणैः सुशोभितः भवति। सर्वाङ्गीणविकासाय पुस्तकीय ज्ञानेन समं नैतिकमूल्यान्यपि छात्रैः ग्रहीतव्यानि। बाल्यावस्थायां मूल्यानां शिक्षा प्रदीयते चेत् व्यक्तित्वस्य सर्वाङ्गीण-विकासः भवति। मानवः स्वकीयं पुरुषार्थं करोति, जीवनलक्ष्यं च प्राप्नोति।

भारतीयसंस्कृतौ आदिकालतः एव जीवनमूल्यानां प्राधान्यम् अस्ति। प्राचीनकालादेव भारतीयसंस्कृतेः मूल्यपरकगुणानां स्तुतिः भवति। एतैः गुणैरेव भारतं विश्वगुरुपदं प्राप्नोत्। सम्प्रत्यपि पुनः तत्पदं प्राप्तुं छात्रेषु बाल्यादेव एते संस्काराः स्थापनीयाः। आधुनिकजीवने मानवाः चिन्तावसादतनावैः सम्पीडिताः सन्ति। कदाचित् ते दुःखकातरो भूत्वा आत्महननमपि कुर्वन्ति। एतान् विकारान् निराकर्तुं जीवनमूल्यानां महती भूमिका वर्तते। अतः सम्प्रतिकाले अध्ययनेन सह जीवनमूल्यशिक्षायाः आवश्यकता वर्तते।

जीवनमूल्यानि सन्ति

  1. उत्कर्षकारणानि
  2. अपकर्षकारणानि
  3. वैभवकारणानि
  4. पराभवकारणानि

Answer (Detailed Solution Below)

Option 1 : उत्कर्षकारणानि

संस्कृत Question 14 Detailed Solution

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प्रश्न अनुवाद - जीवन का मूल्य है -
स्पष्टीकरण​ - गद्यांश में उल्लिखित है "जीवनस्य मूल्यम् अर्थात् ते मानवीयगुणाः ये मानवजीवनम् उत्कर्ष प्राप्यन्ति।" जिसका अर्थ है "जीवनमूल्य अर्थात् वो मानवीयगुण (होते है) जिससे मानवजीवन को उत्कर्ष प्राप्त करते है।"

अर्थात् मानवीयगुण ही उत्कर्षकारण है जो जीवनमूल्य होते है।

अतः "उत्कर्षकारणानि" विकल्प सही है।

'दा' धातु के लृट लकार, मध्यम पुरुष, एकवचन में रूप बनता है-

  1. ददासि
  2. दास्यन्ते
  3. दत्ते
  4. दास्यसि

Answer (Detailed Solution Below)

Option 4 : दास्यसि

संस्कृत Question 15 Detailed Solution

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दा’ धातु से ‘लृट् लकार’ के विविध वचनों और पुरूषों में प्राप्त रूप इस प्रकार है-

पुरूष

एकवचन

द्विवचन

बहुवचन

प्रथमपुरूष

दास्यति

दास्यतः

दास्यन्ति

मध्यमपुरूष

दास्यसि

दास्यथः

दास्यथ

उत्तमपुरूष

दास्यामि

दास्यावः

दास्यामः

 

अतः स्पष्ट है कि 'दास्यसि' इस पद में मूलधातु 'दा' धातु का 'लृट् लकार' मध्यम पुरुष एकवचन है।

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