निम्नलिखितेषु कस्य उद्देशस्य अनुसारं भाषाशिक्षणस्य आवश्यकता न भवति?

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CTET Dec 2018 Paper I (L - I/II: Hindi/English/Sanskrit) (Hinglish Solution)
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  1. जीवनस्य विविधदशानां ज्ञानार्थम्
  2. भाषाबोधस्य (Language comprehension) अध्ययनार्थम्
  3. आभ्यन्तरस्वरस्य (Inner voice) वाचनार्थं, श्रवणार्थञ्च
  4. जीवनस्य विविधावश्यकातानां परिपूरणार्थम्

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Option 1 : जीवनस्य विविधदशानां ज्ञानार्थम्
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प्रश्न का अनुवाद - निम्नलिखित में से किस उद्देश्य के अनुसार भाषा शिक्षण की आवश्यकता नहीं होती?

स्पष्टीकरण - 

भाषा शिक्षण का संबंध केवल भाषा के सीखने-सिखाने तक ही सीमित नहीं है बल्कि उसका राष्ट्र, समाज और शिक्षा से भी गहरा संबंध है। किसी भी देश में एक, दो या उससे अधिक भाषा बोली व समझी जा सकती है। ये सभी भाषाएं राष्ट्रीय, सामाजिक और शैक्षिक स्तर पर अपना भिन्न - भिन्न महत्व रखती है। और प्रत्येक संदर्भ में इसके शिक्षण के स्वरूप को प्रभावित करता है। 

रवीन्द्रनाथ - भाषा शिक्षण का परिचय देते हुए लिखते हैं कि- "भाषा शिक्षण के मूल में भाषा व्यवहार और भाषिक कौशल होते हैं स्वयं भाषा की अपनी संरचना या प्रकृति नहीं।

 

संस्कृत भाषा शिक्षण के सामान्य उद्देश्य -

  1. शुद्ध, सरल, स्पष्ट एव प्रभावशाली भाषा में छात्र अपने भावों, विचारों, अनुभूतियों को अभिव्यक्त कर सकें।
  2. छात्र उचित भाव के साथ वाचन का, काव्य-कला एवं अभिनय-कला का आनन्द प्राप्त कर सकें।
  3. ज्ञान प्राप्त करने और मनोरंजन के लिए पढ़ना-लिखना, सीखना, पुस्तकों में दियें ज्ञान-भंडार का अवलोकन कराना तथा बालक की स्वध्यायशीलता के प्रति रूचि उत्पन्न करना आदि भाषा शिक्षण के महत्वपूर्ण उद्देश्य हैं। 
  4. क्रमबद्ध विचार-प्रणाली और भावाभिव्यंजन में दक्ष बनाना।
  5. बालकों के शब्दों, वाक्यांशों तथा लोकोक्तियों आदि के में कोष में वृद्धि करना।
  6. उनको शुद्धता एवं गति का निरन्तर विकास करते हुए वाचन का अभ्यास कराना।
  7. ज्ञान-क्षेत्र तथा विवेक का निरन्तर विकास करते हुए चरित्र-निर्माण कराना।
  8. विभिन्न शैलियों का परिचय कराकर अपनी उपयुक्त शैली के विकास में सहायता करना।
  9. उन्हें साहित्य' के सृजनता की प्रेरणा देना, जिससे वे अपने अवकाश के समय के सदुपयोग द्वारा अपने व्यक्तिगत तथा सामाजिक जीवन को सुसंस्कृत कर सकें।
  10. बालकों को मानव-स्वभाव एव चरित्र के अध्ययन का अवसर प्रदान करना।
  11. उन्हें अभिमानाकुल, भाषा-प्रयोग, स्वर-निर्माण एवं अंग-संचालन की कला का अभ्यास कराना। 

अतः वाचन और श्रवण में भाषा के शुद्ध प्रयोग के लिए आभ्यंतर स्वर का प्रयत्न जानना आवश्यक है यह ज्ञात होता है। भाषाबोध के अध्ययन में पाठ को समझने के लिए भी उस भाषा के शिक्षण का ज्ञान होना चाहिए। तथा जीवन के दैनंदिन विविध आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिए भी भाषा शिक्षण आवश्यक है।

'जीवनस्य विविधदशानां ज्ञानार्थम्' अर्थात् जीवन के विविध दशाओं के ज्ञान के लिए भाषा शिक्षण की आवश्यकता नहीं यह ज्ञान नैसर्गिक तथा परिवेश को निरिक्षण करके होता है।

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