कस्यचित् प्रतिमानस्य (pattern) आत्मसात्करणार्थं पुनः पुनरभ्यासः (Drilling) उचितः मार्गः वर्तते इति केन संस्तृता?

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CTET Paper 2 Maths & Science 17th Jan 2022 (English-Hindi-Sanskrit)
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  1. सम्प्रेषणात्मकभाषाशिक्षणसिद्धान्तेन
  2. श्रवणभाषणवादेन (Audio-lingualism)
  3. सम्पूर्णशारीरिकप्रतिक्रियया (Total Physical Response)
  4. रचनावादीभाषाशिक्षणेन (Constructivist Language Teaching)

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Option 2 : श्रवणभाषणवादेन (Audio-lingualism)
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प्रश्नानुवाद - किसी प्रतिमान को (pattern) आत्मसात्करण के लिए पुनः पुनः अभ्यास (Drilling) उचित मार्ग है - यह किसके द्वारा संस्तुत है?

स्पष्टीकरण - किसी प्रतिमान, विषय को आत्मसात् करने के लिए उसका अभ्यास एक उत्तम उपाय है। पुनः पुनः अभ्यास करना श्रवण-भाषणवाद द्वारा संस्तुत किया गया है। जिसमें किसी विषय के पुनः पुनः श्रवण और सम्भाषण के अभ्यास द्वारा श्रवण और सम्भाषण कौशल को विकसित किया जा सकता है।

  • अनुपात एवम् क्रम के सिद्धांत अनुसार बच्चों में चार भाषा कौशलों का क्रमबद्ध रूप से विकास होता है। 
  • एक नई भाषा को प्राप्त करने में यह चार कौशल सम्मिलित होते हैं - श्रवण, सम्भाषण, पठन और लेखन (LSRW)।
  • श्रवण कौशल इन कौशलों का आधार कौशल है। जिसके द्वारा इन कौशलों और भाषा को सीखने का आरम्भ होता है।
  • श्रवण कौशल द्वारा ही किसी भाषा के शब्दों को सुना जाता है, जिसको बार-बार सुनने से पुनरावृत्ति द्वारा बालक उस भाषा को बोलना सीख जाता है। इसी क्रम में वह बोलना, पढ़ना व लिखना सीख जाता है।
  • भाषा अभ्यास जन्य है, जो निरन्तर अभ्यास द्वारा आती है, जिसमें सबसे पहले उससे निरन्तर सुनना और सुनकर अर्थग्रहण करना शामिल है।
  • सुनने और पढ़ने का उपयोग सूचना प्राप्त करने के लिए चैनल के रूप में किया जाता है, इस प्रकार इन दो कौशलों को ग्रहणात्मक कौशल कहा जाता है।
  • बोलने और लिखने का उपयोग सूचना भेजने के लिए चैनल के रूप में किया जाता है, इसलिए इन दो कौशलों को उत्पादक कौशल के रूप में लेबल किया जाता है।

Important Points

भाषा कौशल क्रमानुसार -

श्रवण → सम्भाषण → पठन → लेखन

  1. श्रवण कौशल - भाषा के अन्य सभी कौशलों को सीखना एक पूर्वापेक्षा है। यह जो बोली जाती है, उसमें से अर्थ निकालने की एक प्रक्रिया है। इसमें एक भाषा की ध्वनियों को प्राप्त करना, शब्दों में ध्वनियों को संसाधित करना, उन शब्दों के अर्थ और समझ को प्राप्त करना शामिल है। अतः यह चारों कौशलों में सबसे सरल और प्रथम कौशल होता है।
  2. सम्भाषण कौशल - यह सुनने के कौशल से अधिक जटिल है। सम्भाषण कौशल श्रवण कौशल पर आधारित होता है। यह एक भाषा के व्याकरणिक और शाब्दिक संसाधनों, सही उच्चारण, स्पष्ट रूप से बताने की क्षमता आदि के बारे में जागरूक करता है। यह सुनकर बोलने पर आधारित है, अतः श्रवण के बाद यह दूसरा कौशल है।
  3. पठन कौशल - यह लिखित प्रतीकों की एक श्रृंखला को देखने और उनसे अर्थ प्राप्त करने की प्रक्रिया है। जब हम पढ़ते हैं, तो हम अपनी आंखों का उपयोग लिखित प्रतीकों (अक्षरों, विराम चिह्नों और रिक्त स्थान) को प्राप्त करने के लिए करते हैं और हम अपने मस्तिष्क का उपयोग उन्हें शब्दों, वाक्यों और पद्यांशो में बदलने के लिए करते हैं जो हमारे लिए कुछ संचार करते हैं।पठन में धारणा, मान्यता, संघ, समझ, संगठन और खोज अर्थ शामिल हैं।
  4. लेखन कौशल - यह एक सचेत और नियोजित गतिविधि है। यह लेखक के लेखन की यांत्रिकी का उपयोग करने की भाषाई क्षमता को संदर्भित करता है।

 

अतः कहा जा सकता है कि किसी प्रतिमान को (pattern) आत्मसात्करण के लिए पुनः पुनः अभ्यास करना श्रवण-भाषणवाद द्वारा संस्तुत किया गया है।

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