Question
Download Solution PDF'बन बितान रबि ससि दियो, फल भख सलिल प्रवाह।
अवनि सेज, पंखा-पवन, अब न कछू परवाह।'
प्रस्तुत पंक्तियों में कौन सा रस है?
Answer (Detailed Solution Below)
Detailed Solution
Download Solution PDF'बन बितान रबि ससि दियो, फल भख सलिल प्रवाह। अवनि सेज, पंखा-पवन, अब न कछू परवाह।' प्रस्तुत पंक्तियों में शांत रस है।
शांत-
- यह रस का प्रकार हैं।
- इसका स्थायी भाव निर्वेद है।
- सांसारिक सुख तथा देह की क्षणभंगुरता का ज्ञान, सन्त समागम, शास्त्र चिन्तन और योग आदि उसके विभाव हैं।
- सब प्राणियों पर दया, परमानन्द की उपलब्धि से मग्नता और आप्तकाम होकर असंग रहना इसके अनुभाव हैं।
- मति, धृति और हर्ष आदि इसके संचारी भाव हैं।
- उदाहरण-
- मन रे ! परस हरि के चरण
सुभग सीतल कमल कोमल,
त्रिविध ज्वाला हरण।
- मन रे ! परस हरि के चरण
Key Pointsरस-
- स्थायीभाव आश्रय के हृदय में आलम्बन के द्वारा उत्तेजित होकर उद्दीपन के प्रभाव से उद्दीप्त होकर, संचारी भावों से पुष्ट होता हुआ अनुभावों के माध्यम से व्यक्त होता है।
- जब काव्यगत स्थायी भाव की अनुभूति पाठक को होती है तो वही रसानुभूति’ या ‘रस-निष्पत्ति’ कहलाती है।
- भरतमुनि-
- “विभावानुभावव्यभिचारी संयोगाद्रसनिष्पत्तिः।”
Important Pointsहास्य-
- यह रस का प्रकार हैं।
- सहृदय के हृदय में स्थित हास्य नामक स्थायी भाव का जब विभाव, अनुभाव और संचारी भाव से संयोग हो जाता है तो वह हास्य रस कहलाता है।
- उदाहरण-
- इस दौड़-धूप में क्या रखा आराम करो, आराम करो।
आराम जिन्दगी की कुंजी, इससे न तपेदिक होती है।
- इस दौड़-धूप में क्या रखा आराम करो, आराम करो।
शृंगार रस-
- शृंगार रस रसों में से एक प्रमुख रस है।
- यह रति भाव को दर्शाता है।
- सौन्दर्य के अवलोकन करने पर जो लोकोत्तर आनंद प्राप्त होता है, उसे शृंगार रस कहते है।
- इसमें नारी-पुरुष के अनुराग का वर्णन आता है।
- इसके दो भेद हैं-
- संयोग शृंगार
- वियोग शृंगार
- उदाहरण-
- एक पल मेरे प्रिया के दृग-पलक
थे उठे ऊपर सहज नीचे गिरे
चपलता ने इस विकंपित पुलक से
दृढ़ किया मानो प्रणय सम्बन्ध था।
- एक पल मेरे प्रिया के दृग-पलक
करुण-
- यह रस का प्रकार हैं।
- सहदय के हृदय में शोक नामक स्थित भाव का जब विभाव, अनुभाव, संचारी भाव के साथ संयोग होता है तो वह करुण रस का रूप ग्रहण कर लेता है।
- उदाहरण-
- जा थल कीन्हें बिहार अनेकन ता थल काँकरि बैठि चुन्यौ करै।
जा रसना ते करी बहुबातन ता रसना ते चरित्र गुन्यों करै।
‘आलम’ जौन से कुंजन में करि केलि तहाँ अब सीस धुन्यों करै।
नैनन में जो सदा रहते तिनकी, अब कान कहानी सुन्यौ करे।
- जा थल कीन्हें बिहार अनेकन ता थल काँकरि बैठि चुन्यौ करै।
Last updated on Jun 6, 2025
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