शांत रस MCQ Quiz - Objective Question with Answer for शांत रस - Download Free PDF
Last updated on Mar 21, 2025
Latest शांत रस MCQ Objective Questions
शांत रस Question 1:
नीचे दो कथन दिए गए हैं : एक अभिकथन (Assertion A) के रूप में लिखित है तो दूसरा उसके कारण (Reason R) के रूप में;
अभिकथन (A) : रुद्र्ट ने 'शांत' एवं 'प्रेयान' दो नए रसों का उल्लेख किया है।
कारण (R) : शांत रस का स्थायीभाव 'सम्यक ज्ञान' माना है ।
उपरोक्त कथन के आलोक में, नीचे दिए गए विकल्पों में से सही उत्तर का चयन कीजिए:
Answer (Detailed Solution Below)
शांत रस Question 1 Detailed Solution
शांत रस Question 2:
हाँ रघुनंदन प्रेम परीते । तुम विन जिअत बहुत दिन बीते II
Answer (Detailed Solution Below)
शांत रस Question 2 Detailed Solution
सही उत्तर है - शांत रस
- भावार्थ - हाँ रघुकुल को आनंद देने वाले मेरे प्राण प्यारे राम! तुम्हारे बिना जीते हुए मुझे बहुत दिन बीत गए।
Key Points
- वैराग्य भावना के उत्पन्न होने अथवा संसार से असंतोष होने पर शान्त रस की क्रिया उत्पन्न होती है। शान्त रस का स्थायी भाव 'निर्वेद' है।
उदाहरण-
- बुद्ध का संसार-त्याग- क्या भाग रहा हूँ भार देख?
- तू मेरी ओर निहार देख- मैं त्याग चला निस्सार देख।
- (यहाँ पर बुद्ध के संसार त्यागने से उत्पन्न रस को शांत रस कहा गया है।)
Important Points
रस | स्थायी भाव |
शृंगार | रति |
करुण | शोक |
हास्य | हास |
वीर | उत्साह |
भयानक | भय |
रौद्र | क्रोध |
अद्भुत | आश्चर्य , विस्मय |
शांत | निर्वेद या निर्वृती |
वीभत्स | जुगुप्सा |
वात्सल्य | रति |
Additional Information
वीर रस:-
उदाहरण -
संयोग शृंगार:-
उदाहरण-
करुण रस:-
उदाहरण-
|
शांत रस Question 3:
'अब लौ नसानी अब न नसैहों, इसमें कौन सा रस है ?
Answer (Detailed Solution Below)
शांत रस Question 3 Detailed Solution
'अब लौ नसानी अब न नसैहों'- इसमें शांत रस है।
Key Pointsशांत रस-
- जब किसी वस्तु, प्राणी अथवा किसी प्रिय जन से मोहभंग होता है वहां शांत रस की निष्पत्ति मानी जाती है।
- स्थायी भाव- निर्वेद
- आलंबन-
- संसार की असारता, मृत्यु, जरा, रोग , सांसारिक प्रपंच आदि का ज्ञान, श्मशान वैराग्य आदि।
- उद्दीपन-
- सत्संग, धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन- श्रवण, तीर्थाटन, जीवन के अनुभव आदि।
- अनुभाव-
- संयम, स्वार्थ का त्याग, सब कुछ बांट देना, सत्संग करना, गृह त्याग, शास्त्र अध्ययन, स्वाध्याय, आत्मचिंतन, रोमांच, कम्पन आदि।
- संचारी भाव-
- घृणा, हर्ष, ग्लानि, मति, स्मृति, धृति, संतोष, आशा, विश्वास, दैन्य आदि।
- उदाहरण-
- मन रे तन कागद का पुतला
लागै बूंद बिनसि जाय छिन में,
गरब करै क्या इतना।
- मन रे तन कागद का पुतला
Important Pointsकरुण रस-
- जिस रस के आस्वादन से हृदय में शोक का आविर्भाव हो,उसे करुण रस कहते है।
- स्थायी भाव-शोक
- संचारी भाव-मोह,विषाद,अश्रु,अपस्मार,उन्माद आदि।
- गुण-माधुर्य
- विरोधी रस-हास्य और शृंगार रस।
- उदाहरण-
- हाय राम कैसे झेलें हम पनी लज्जा अपना शोक।
गया हमारे ही हाथों से अपना राष्ट्र पिता परलोक॥
- हाय राम कैसे झेलें हम पनी लज्जा अपना शोक।
अद्भुत रस-
- आश्चर्यजनक एवं विचित्र चीजों को देखकर विस्मयकारी भावना का उत्पन्न होना अद्भुत रस कहलाता है।
- उदाहरण-
- देख यशोदा शिशु के मुख में सकल विश्व की माया।
क्षणभर को वह बनी अचेतन हिल न सकी कोमल काया।।
- देख यशोदा शिशु के मुख में सकल विश्व की माया।
वीर रस-
- जब किसी रचना या वाक्य आदि से वीरता का अनुभव होता है,वहाँ वीर रस होता है।
- इसका स्थायी भाव उत्साह है।
- उदाहरण-
- बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।
Additional Informationरस-
- काव्य को पढने से जिस आनंद की अनुभूति होती है अर्थात जिस अनिवर्चनीय भाव का संचार ह्रदय में होता है, उसी आनंद को रस कहा जाता है।
- रस का विवेचन सर्वप्रथम भरत मुनि ने अपने ग्रन्थ नाट्य शास्त्र में किया था।
- भरत मुनि के अनुसार रसों की संख्या 8 है परन्तु अभिनव गुप्त ने 9 रसों को मान्यता दी है।
- अतः अब रसों की संख्या 9 मानी जाती है, श्रृंगार रस में ही वात्सल्य और भक्ति रस भी शामिल हैं।
शांत रस Question 4:
"जब मैं था तब हरि नहीं अब हरि है मैं नाहीं । प्रेम गली अति सांकरी जामें दो न समाहीं ॥" इस पद में कौनसा रस है?
Answer (Detailed Solution Below)
शांत रस Question 4 Detailed Solution
सही उत्तर विकल्प 1 शांत रस’ है। अन्य विकल्प इसके अनुचित उत्तर हैं।
Key Points
- उपरोक्त काव्य पंक्ति 'शांत रस’ की प्रतीत होती है।
- क्योंकि इन पंक्तियों में चित्रित किया गया है कि कबीर दास जी को ईश्वर की सत्ता से साक्षात्कार होने के बाद अहं से विरक्ति का भाव महसूस हुआ।
- कबीर दास ने लिखा है कि जब तक मन में अहंकार था तब तक ईश्वर का साक्षात्कार न हुआ, जब अहंकार (अहम) समाप्त हुआ तभी प्रभु मिले | जब ईश्वर का साक्षात्कार हुआ, तब अहंकार स्वत: ही नष्ट हो गया | ईश्वर की सत्ता का बोध तभी हुआ | प्रेम में द्वैत भाव नहीं हो सकता, प्रेम की संकरी (पतली) गली में केवल एक ही समा सकता है - अहम् या परम ! परम की प्राप्ति के लिए अहम् का विसर्जन आवश्यक है|
शांत रस |
शांति रस का विषय वैराग्य है। जहां संसार की अनिश्चित एवं दु:ख की अधिकता को देखकर हृदय में विरक्ति उत्पन्न हो। |
चलती चाकी देखकर दिया कबीरा रोय। दुइ पाटन के बीच में साबुत बचा न कोय। |
Additional Information
रस |
काव्य को पढ़ने, सुनने से उत्पन्न होने वाले आनंद की अनुभूति को साहित्य के अंतर्गत रह कहा जाता है। हिंदी में ‘स्थायी भाव’ के आधार पर काव्य में ‘नौ’ रस बताए गए हैं, जो निम्नलिखित हैं:- |
रस और उनके स्थायी भाव -
|
रस |
स्थायी भाव |
1. |
शृंगार रस |
रति |
2. |
हास्य रस |
हास |
3. |
करुण रस |
शोक |
4. |
रौद्र रस |
क्रोध |
5. |
वीर रस |
उत्साह |
6. |
भयानक रस |
भय |
7. |
वीभत्स रस |
जुगुप्सा |
8. |
अद्भुत रस |
विस्मय |
9. |
शांत |
निर्वेद |
शांत रस Question 5:
'अब लौ नसानी अब न नसैहों, इसमें कौन सा रस है ?
Answer (Detailed Solution Below)
शांत रस Question 5 Detailed Solution
'अब लौ नसानी अब न नसैहों'- इसमें शांत रस है।
Key Pointsशांत रस-
- जब किसी वस्तु, प्राणी अथवा किसी प्रिय जन से मोहभंग होता है वहां शांत रस की निष्पत्ति मानी जाती है।
- स्थायी भाव- निर्वेद
- आलंबन-
- संसार की असारता, मृत्यु, जरा, रोग , सांसारिक प्रपंच आदि का ज्ञान, श्मशान वैराग्य आदि।
- उद्दीपन-
- सत्संग, धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन- श्रवण, तीर्थाटन, जीवन के अनुभव आदि।
- अनुभाव-
- संयम, स्वार्थ का त्याग, सब कुछ बांट देना, सत्संग करना, गृह त्याग, शास्त्र अध्ययन, स्वाध्याय, आत्मचिंतन, रोमांच, कम्पन आदि।
- संचारी भाव-
- घृणा, हर्ष, ग्लानि, मति, स्मृति, धृति, संतोष, आशा, विश्वास, दैन्य आदि।
- उदाहरण-
- मन रे तन कागद का पुतला
लागै बूंद बिनसि जाय छिन में,
गरब करै क्या इतना।
- मन रे तन कागद का पुतला
Important Pointsकरुण रस-
- जिस रस के आस्वादन से हृदय में शोक का आविर्भाव हो,उसे करुण रस कहते है।
- स्थायी भाव-शोक
- संचारी भाव-मोह,विषाद,अश्रु,अपस्मार,उन्माद आदि।
- गुण-माधुर्य
- विरोधी रस-हास्य और शृंगार रस।
- उदाहरण-
- हाय राम कैसे झेलें हम पनी लज्जा अपना शोक।
गया हमारे ही हाथों से अपना राष्ट्र पिता परलोक॥
- हाय राम कैसे झेलें हम पनी लज्जा अपना शोक।
अद्भुत रस-
- आश्चर्यजनक एवं विचित्र चीजों को देखकर विस्मयकारी भावना का उत्पन्न होना अद्भुत रस कहलाता है।
- उदाहरण-
- देख यशोदा शिशु के मुख में सकल विश्व की माया।
क्षणभर को वह बनी अचेतन हिल न सकी कोमल काया।।
- देख यशोदा शिशु के मुख में सकल विश्व की माया।
वीर रस-
- जब किसी रचना या वाक्य आदि से वीरता का अनुभव होता है,वहाँ वीर रस होता है।
- इसका स्थायी भाव उत्साह है।
- उदाहरण-
- बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।
Additional Informationरस-
- काव्य को पढने से जिस आनंद की अनुभूति होती है अर्थात जिस अनिवर्चनीय भाव का संचार ह्रदय में होता है, उसी आनंद को रस कहा जाता है।
- रस का विवेचन सर्वप्रथम भरत मुनि ने अपने ग्रन्थ नाट्य शास्त्र में किया था।
- भरत मुनि के अनुसार रसों की संख्या 8 है परन्तु अभिनव गुप्त ने 9 रसों को मान्यता दी है।
- अतः अब रसों की संख्या 9 मानी जाती है, श्रृंगार रस में ही वात्सल्य और भक्ति रस भी शामिल हैं।
Top शांत रस MCQ Objective Questions
‘शांत रस’ का स्थायी भाव इनमे से कौन सा है?
Answer (Detailed Solution Below)
शांत रस Question 6 Detailed Solution
Download Solution PDFदिए गए विकल्पों में से निर्वेद ‘शांत रस’ का स्थायी भाव है। अन्य विकल्प असंगत है। अतः सही विकल्प निर्वेद है।
अन्य विकल्प
रस |
परिभाषा |
उदाहरण |
हास्य रस (इसका स्थाई भाव हास है) |
जहां विकृत आकार, वेश-भूषा, चेष्टा आदि के वर्णन से हास्य उत्पन्न हो। |
जैसे – तंबूरा ले मंच पर बैठे प्रेम प्रताप, साज मिले पंद्रह मिनट, घंटा भर आलाप। |
रौद्र रस (इसका स्थाई भाव क्रोध है) |
किसी व्यक्ति के द्वारा क्रोध में किए गए अपमान आदि से उत्पन्न हुआ भाव। |
जैसे - अविरत बोले वचन कठोर, बेगी देखाउ मूढ नत आजू। उलतऊँ माहि जंह लग तवराजू। |
शृंगार रस (इसका स्थाई भाव रति (प्रेम) है) |
जिस रस में नायक नायिका के प्रेम, मिलने, बिछुड़ने जैसी क्रियायों का वर्णन हो। |
जैसे - बतरस लालच लाल की, मुरली धरी लुकाय। कहां करें, भौंहनी हंसे, दैन कहै, नटि जाय। |
निम्नलिखित प्रश्न में, चार विकल्पों में से, उस विकल्प का चयन करें, जो दिए गए पद्य के उचित रस रूप का सबसे अच्छा विकल्प है।
लागी बूंद बिनसि जाय छिन में, गरब करै क्या इतना
Answer (Detailed Solution Below)
शांत रस Question 7 Detailed Solution
Download Solution PDFउपर्युक्त पंक्तियों में शांत रस हैं। अन्य विकल्प असंगत हैं। अतः सही विकल्प 1 ‘शांत रस’ है।
Key Points
-
लागी बूंद बिनसि जाय छिन में, गरब करै क्या इतना।
-
इन पंक्तियों में शांत रस है, इसमें कबीरदास ही ने वर्णित किया है कि हे! मानव तू इतना गर्व क्यों करता है, मन तो कागज के पुतले के समान है।
-
शान्त रस विषय वैराग्य एवं स्यायी भाव निर्वेद हैं। संसार की अनिश्चित एवं दु:ख की अधिकता को देखकर ह्रदय में विरक्ति उत्पन्न होती है। इस प्रकार के वर्णनो मे शान्त रस होता हैं।
अन्य विकल्प -
रौद्र रस |
दुष्ट के अत्याचार, अपने अपमान आदि के कारण जाग्रत क्रोध स्थायी भाव का विभावादि मे पुष्ट होकर रौद्र रस रूप मे परिपाक होता हैं। |
हास्य रस |
जहाँ किसी व्यक्ति की विकृत (अटपटी) बाते वेश एवं बनावट, चेष्टा आदि का वर्णन हो जिसे सुनकर या देखकर हँसी उत्पन्न होती हैं, वहाँ हास्य रस होता हैं। |
करुण रस |
किसी प्रिय व्यक्ति या वस्तु के विनाश या अनिष्ट की आशंका से जागे शोक स्थायी भाव का विभावादि से पुष्ट होने पर करूण रस परिपाक होता हैं। |
Additional Information
रस |
रस का शाब्दिक अर्थ है 'आनन्द'। काव्य को पढ़ने या सुनने से जिस आनन्द की अनुभूति होती है, उसे रस कहा जाता है। |
शांत रस का स्थायी भाव क्या है ?
Answer (Detailed Solution Below)
शांत रस Question 8 Detailed Solution
Download Solution PDF- शांत रस - तत्त्वज्ञान और संसार से वैराग्य होने पर शांत रस की उत्पत्ति मानी गई है। जहाँ न दुःख हो, न सुख, न द्वेष हो, न राग और न कोई इच्छा हो ऐसी मन:स्थिति में शांत रस की उत्पत्ति होती है।
- स्थायी भाव - निर्वेद
- उदाहरण - मन पछितैही अवसर बीते
- स्थायी भाव - स्थायी भाव सुप्त अवस्था में सदैव सहृदय व्यक्ति के हृदय में विद्यमान रहते हैं, जो की अवसर आने पर वह जाग्रत होते हैं रस के रूप में परिणत होते हैं।
- विभाव - जिसके द्वारा (व्यक्ति, पदार्थ आदि) स्थायी भाव उद्दीप्त हो।
- विभाव के अंग - आलंबन विभाव और उद्दीपन विभाव
- अनुभाव - आलंबन और उद्दीपन द्वारा रस की उत्पत्ति को पुष्ट करनेवाले भाव।
- संचारी अथवा व्यभिचारी भाव - जो भाव स्थायी भावों को अधिक पुष्ट करते हैं, व तत्काल बनते एवं मिटते हैं उन्हें ही संचारी भाव कहा जाता है।
- संचारी भावों की संख्या 33 मानी गई है।
रस | स्थायी भाव |
शृंगार | रति |
हास्य | हास |
करुण | शोक |
रौद्र | क्रोध |
वीर | उत्साह |
भयानक | भय |
अद्भुत | आश्चर्य |
वीभत्स | जुगुप्सा |
शांत | निर्वेद |
वात्सल्य | वत्सलता |
भक्ति | देवविषयक रति/दास्य |
निम्नलिखित पंक्तियों में कौन सा रस हैं?
"सबते होय उदास मन बसै एक ही ठौर।
ताही सों सम रस कहत केसब कबि सिरमौर।
Answer (Detailed Solution Below)
शांत रस Question 9 Detailed Solution
Download Solution PDFKey Points
-
"सबते होय उदास मन बसै एक ही ठौर।
ताही सों सम रस कहत केसब कबि सिरमौर।" - इन पंक्तियों में शांत रस है, कवि केशवदास ने शम के कारण शांत रस को शम रस का नाम दे दिया है।
- संसार और जीवन की नश्वरता का बोध होने से चित्त में एक प्रकार का विराग उत्पन्न होता है परिणामत: मनुष्य भौतिक तथा लौकिक वस्तुओं के प्रति उदासीन हो जाता है, इसी को निर्वेद कहते हैं। जो विभाव, अनुभाव और संचारी भावों से पुष्ट होकर शान्त रस में परिणत हो जाता है।
अन्य विकल्प -
वीर रस |
युद्ध अथवा किसी कठिन कार्य को करने के लिए हृदय में निहित ‘उत्साह’ स्थायी भाव के जाग्रत होने के प्रभावस्वरूप जो भाव उत्पन्न होता है, उसे वीर रस कहा जाता है। |
वात्सल्य रस |
वात्सल्य रस का सम्बन्ध छोटे बालक-बालिकाओं के प्रति माता-पिता एवं सगे-सम्बन्धियों का प्रेम एवं ममता के भाव से है। वात्सल्य रस का स्थायी भाव वत्सलता या स्नेह है। |
भक्ति रस |
भक्ति रस शान्त रस से भिन्न है। शान्त रस जहाँ निर्वेद या वैराग्य की ओर ले जाता है वहीं भक्ति ईश्वर विषयक रति की ओर ले जाते हैं यही इसका स्थायी भाव भी है। भक्ति रस के पाँच भेद हैं-शान्त, प्रीति, प्रेम, वत्सल और मधुर। ईश्वर के प्रति भक्ति भावना स्थायी रूप में मानव संस्कार में प्रतिष्ठित है, इस दृष्टि से भी भक्ति रस मान्य है। |
Additional Information
रस |
रस का शाब्दिक अर्थ ]है 'आनन्द'। काव्य को पढ़ने या सुनने से जिस आनन्द की अनुभूति होती है, उसे रस कहा जाता है। |
'बन बितान रबि ससि दियो, फल भख सलिल प्रवाह।
अवनि सेज, पंखा-पवन, अब न कछू परवाह।'
प्रस्तुत पंक्तियों में कौन सा रस है?
Answer (Detailed Solution Below)
शांत रस Question 10 Detailed Solution
Download Solution PDF'बन बितान रबि ससि दियो, फल भख सलिल प्रवाह। अवनि सेज, पंखा-पवन, अब न कछू परवाह।' प्रस्तुत पंक्तियों में शांत रस है।
शांत-
- यह रस का प्रकार हैं।
- इसका स्थायी भाव निर्वेद है।
- सांसारिक सुख तथा देह की क्षणभंगुरता का ज्ञान, सन्त समागम, शास्त्र चिन्तन और योग आदि उसके विभाव हैं।
- सब प्राणियों पर दया, परमानन्द की उपलब्धि से मग्नता और आप्तकाम होकर असंग रहना इसके अनुभाव हैं।
- मति, धृति और हर्ष आदि इसके संचारी भाव हैं।
- उदाहरण-
- मन रे ! परस हरि के चरण
सुभग सीतल कमल कोमल,
त्रिविध ज्वाला हरण।
- मन रे ! परस हरि के चरण
Key Pointsरस-
- स्थायीभाव आश्रय के हृदय में आलम्बन के द्वारा उत्तेजित होकर उद्दीपन के प्रभाव से उद्दीप्त होकर, संचारी भावों से पुष्ट होता हुआ अनुभावों के माध्यम से व्यक्त होता है।
- जब काव्यगत स्थायी भाव की अनुभूति पाठक को होती है तो वही रसानुभूति’ या ‘रस-निष्पत्ति’ कहलाती है।
- भरतमुनि-
- “विभावानुभावव्यभिचारी संयोगाद्रसनिष्पत्तिः।”
Important Pointsहास्य-
- यह रस का प्रकार हैं।
- सहृदय के हृदय में स्थित हास्य नामक स्थायी भाव का जब विभाव, अनुभाव और संचारी भाव से संयोग हो जाता है तो वह हास्य रस कहलाता है।
- उदाहरण-
- इस दौड़-धूप में क्या रखा आराम करो, आराम करो।
आराम जिन्दगी की कुंजी, इससे न तपेदिक होती है।
- इस दौड़-धूप में क्या रखा आराम करो, आराम करो।
शृंगार रस-
- शृंगार रस रसों में से एक प्रमुख रस है।
- यह रति भाव को दर्शाता है।
- सौन्दर्य के अवलोकन करने पर जो लोकोत्तर आनंद प्राप्त होता है, उसे शृंगार रस कहते है।
- इसमें नारी-पुरुष के अनुराग का वर्णन आता है।
- इसके दो भेद हैं-
- संयोग शृंगार
- वियोग शृंगार
- उदाहरण-
- एक पल मेरे प्रिया के दृग-पलक
थे उठे ऊपर सहज नीचे गिरे
चपलता ने इस विकंपित पुलक से
दृढ़ किया मानो प्रणय सम्बन्ध था।
- एक पल मेरे प्रिया के दृग-पलक
करुण-
- यह रस का प्रकार हैं।
- सहदय के हृदय में शोक नामक स्थित भाव का जब विभाव, अनुभाव, संचारी भाव के साथ संयोग होता है तो वह करुण रस का रूप ग्रहण कर लेता है।
- उदाहरण-
- जा थल कीन्हें बिहार अनेकन ता थल काँकरि बैठि चुन्यौ करै।
जा रसना ते करी बहुबातन ता रसना ते चरित्र गुन्यों करै।
‘आलम’ जौन से कुंजन में करि केलि तहाँ अब सीस धुन्यों करै।
नैनन में जो सदा रहते तिनकी, अब कान कहानी सुन्यौ करे।
- जा थल कीन्हें बिहार अनेकन ता थल काँकरि बैठि चुन्यौ करै।
निम्नलिखित में से किसने 'शांत रस' को भी नाटक में अनुभव-योग्य माना है?
Answer (Detailed Solution Below)
शांत रस Question 11 Detailed Solution
Download Solution PDFदण्डी ने 'शांत रस' को भी नाटक में अनुभव-योग्य माना है।
आचार्य दंडी-
- समय-7 वीं शती
- संस्कृत काव्य परंपरा के आचार्य है।
- रचनाएँ-
- काव्यादर्श आदि।
Key Pointsशांत रस-
- स्थायी भाव-निर्वेद
- गुण-माधुर्य
- आलम्बन-संसार की असारता, क्षणभंगुरता आदि।
- उद्दीपन-सत्संग, श्मशान या तीर्थदर्शन, मृतक आदि।
- अनुभाव-रोमांच, अश्रु, पश्चात्ताप, ग्लानि आदि।
- संचारी भाव-हर्ष, धृति, मति, स्मरण, बोध आदि।
- उदाहरण-
- हाथी न साथी न घोरे न चेरे न गाँव न ठाँव को नाँव बिलैहै।
तात न मात न मित्र न पुत्र न बित्त न अंग के संग रहै है।
- हाथी न साथी न घोरे न चेरे न गाँव न ठाँव को नाँव बिलैहै।
Important Pointsउद्भट-
- समय-8 वीं शती
- रचना-
- काव्यालंकारसारसंग्रह।
भामह-
- समय-छठी शती
- रचना-
- काव्यालंकार।
वामन-
- समय-8 वीं शती
- रचना-
- काव्यालंकार सूत्र।
Additional Informationरस-
- रस काव्य का मूल आधार प्राणतत्व अथवा आत्मा है।
- आचार्य भरतमुनि-
- "विभावानुभावव्यभिचारि संयोगाद्रसनिष्पत्ति।"
शांत रस का स्थायी भाव क्या है?
Answer (Detailed Solution Below)
शांत रस Question 12 Detailed Solution
Download Solution PDFदिए गए विकल्पों में से निर्वेद शांत रस का स्थायी भाव है। अन्य विकल्प असंगत है। अतः सही विकल्प निर्वेद है।
स्पष्टीकरण
शांत रस (इसका स्थाई भाव निर्वेद है) |
अनित्य और असार तथा परमात्मा के वास्तविक ज्ञान से विषयों के वैराग्य से उत्पन्न रस परिपक्व होकर शांति में परिणत हो। |
जैसे – मन रे तन कागद का पुतला। लागे बूंद बिनसि जाय छिन में, गरब करें क्या इतना। |
"कबहुँक हों यही रहनि रहोंगे। श्री रघुनाथ कृपाल कृपा तें संत सुभाव गहओंगो॥ " पंक्ति में कौन-सा रस है?
Answer (Detailed Solution Below)
शांत रस Question 13 Detailed Solution
Download Solution PDFउपर्युक्त विकल्पों में से विकल्प "शांत रस" सही है तथा अन्य विकल्प असंगत है।
- कबहुँक हों यही रहनि रहोंगे।
- श्री रघुनाथ कृपाल कृपा तें संत सुभाव गहओंगो ॥
- उपर्युक्त पंक्ति में शांत रस है।
- उपर्युक्त पंक्ति तुलसी दास की है।
- शांत रस का अन्य उदाहरण
- मन रे तन कागद का पुतला।
- लागै बूँद बिनसि जाय छिन में, गरब करै क्या इतना॥
- यह पंक्ति कबीर की है।
- शांत रस
- शांत रस का उल्लेख यहाँ कुछ दृष्टि और शांत स्वभाव आवश्यक है।
- इसके स्थायीभाव के संबंध में ऐकमत्य नहीं है।
- कोई शम को और कोई निर्वेद को स्थायी मानता है।
- करुण रस का उदाहरण
- मुख मुखाहि लोचन स्रवहि सोक न हृदय समाइ।
- मनहूँ करुन रस कटकई उत्तरी अवध बजाइ॥
- (तुलसीदास)
- भयानक रस का उदाहरण
- अखिल यौवन के रंग उभार, हड्डियों के हिलाते कंकाल
- कचो के चिकने काले, व्याल, केंचुली, काँस, सिबार।
- भक्ति रस का उदाहरण
- अँसुवन जल सिंची-सिंची प्रेम-बेलि बोई।
- मीरा की लगन लागी, होनी हो सो होई।।
- (मीरा)
- रस - स्थायी भाव
- श्रंगार रस :- रति
- हास्य रस :- हास, हँसी
- वीर रस :- उत्साह
- करुण रस :- शोक
- शांत रस :- निर्वेद, उदासीनता
- अदभुत रस :- विस्मय, आश्चर्य
- भयानक रस :- भय
- रौद्र रस :- क्रोध
- वीभत्स रस :- जुगुप्सा
- वात्सल्य रस :- वात्सल्यता, अनुराग
- भक्ति रस :- देव रति
रस का नाम बताए:
“मन रे तन कागद का पुतला।
लागै बूँद बिनसि जाय छिन में, गरब करै क्या इतना।।"
Answer (Detailed Solution Below)
शांत रस Question 14 Detailed Solution
Download Solution PDFउपर्युक्त पद्यांश में शांत रस का भाव है. अत: सही विकल्प 2 'शांत रस' है. अन्य विकल्प अनुचित उत्तर है.
- शांत रस - अभिनवगुप्त ने शान्त रस को सर्वश्रेष्ठ माना है। संसार और जीवन की नश्वरता का बोध होने से चित्त में एक प्रकार का विराग उत्पन्न होता है परिणामतः मनुष्य भौतिक तथा लौकिक वस्तुओं के प्रति उदासीन हो जाता है, इसी को निर्वेद कहते हैं। जो विभाव, अनुभाव और संचारी भावों से पुष्ट होकर शान्त रस में परिणत हो जाता है।
अन्य विकल्प
- वात्सल्य रस - वात्सल्य रस का सम्बन्ध छोटे बालक-बालिकाओं के प्रति माता-पिता एवं सगे-सम्बन्धियों का प्रेम एवं ममता के भाव से है। हिन्दी कवियों में सूरदास ने वात्सल्य रस को पूर्ण प्रतिष्ठा दी है। तुलसीदास की विभिन्न कृतियों के बालकाण्ड में वात्सल्य रस की सुन्दर व्यंजना द्रष्टव्य है। वात्सल्य रस का स्थायी भाव वत्सलता या स्नेह है।
- भयानक रस - भयप्रद वस्तु या घटना देखने सुनने अथवा प्रबल शत्रु के विद्रोह आदि से भय का संचार होता है। यही भय स्थायी भाव जब विभाव, अनुभाव और संचारी भावों में परिपुष्ट होकर आस्वाद्य हो जाता है तो वहाँ भयानक रस होता है।
- अदभुत रस - अलौकिक, आश्चर्यजनक दृश्य या वस्तु को देखकर सहसा विश्वास नहीं होता और मन में स्थायी भाव विस्मय उत्पन्न होता हैं। यही विस्मय जब विभाव, अनुभाव और संचारी भावों में पुष्ट होकर आस्वाद्य हो जाता है, तो अद्भुत रस उत्पन्न होता है।
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रस - रस काव्य का मूल आधार ‘ प्राणतत्व ‘ अथवा ‘ आत्मा ‘ है रस का संबंध ‘ सृ ‘ धातु से माना गया है। जिसका अर्थ है जो बहता है , अर्थात जो भाव रूप में हृदय में बहता है उसे को रस कहते हैं।एक अन्य मान्यता के अनुसार रस शब्द ‘ रस् ‘ धातु और ‘ अच् ‘ प्रत्यय के योग से बना है। जिसका अर्थ है – जो वहे अथवा जो आश्वादित किया जा सकता है। रस निष्पत्ति अर्थात विभाव अनुभाव और संचारी भाव के सहयोग से ही रस की निष्पत्ति होती है , किंतु साथ ही वे स्पष्ट करते हैं कि स्थाई भाव ही विभाव , अनुभाव और संचारी भाव के सहयोग से स्वरूप को ग्रहण करते हैं।
भरतमुनि के कथनानुसार किस रस स्थायी को अभिनय में दिखाना संभव नहीं?
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शांत रस Question 15 Detailed Solution
Download Solution PDF- 'नाट्यशास्त्र' में भरतमुनि ने रसों की संख्या आठ मानी है- श्रृंगार, हास्य, करुण, रौद्र, वीर, भयानक, वीभत्स तथा अद्भुत।
- उन्होंने शांत रस को स्वीकर नहीं किया है।
- अत: भरतमुनि के कथनानुसार शांत रस स्थायी को अभिनय में दिखाना संभव नहीं।
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रस और उनके स्थायी भाव-
रस |
स्थायी भाव |
शृंगार रस |
रति |
हास्य रस |
हास |
करुण रस |
शोक |
रौद्र रस |
क्रोध |
वीर रस |
उत्साह |
भयानक रस |
भय |
वीभत्स रस |
जुगुप्सा |
अद्भुत रस |
विस्मय |
शांत रस |
निर्वेद |
वात्सल्य रस |
वत्सल |
भक्ति रस |
देव रति |