अष्टादशशताब्द्याः अन्तं यावत् मौखिकपरीक्षाः एव कस्य प्राचीनतमसाधनत्वेन आसन्?

This question was previously asked in
REET Level 2 Social Science - 24th July 2022 (S3) (Hindi-English-Sanskrit)
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  1. मूल्याङ्कनस्य
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Option 1 : मूल्याङ्कनस्य
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REET CT 1: CDP (Growth and Development)
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प्रश्नानुवाद - अट्ठारहवीं शताब्दी के अन्त तक मौखिक परीक्षा ही किसके प्राचीनतम साधन थे?

स्पष्टीकरण - शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया में निर्धारित किये गये उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु मूल्यांकन/परीक्षा को किया जाता है। जिससे यह ज्ञात हो सके कि छात्रों ने कितना सीखा और उन्हें कितने सुधार की आवश्यकता है।

अट्ठारहवीं शताब्दी के अन्त तक मौखिक परीक्षा ही मूल्याङ्कन का प्राचीनतम साधन थी। जहाँ कण्ठस्थीकरण को महत्व दिया जाता था तथा परीक्षा भी साक्षात्कार के रूप में मौखिक परीक्षा होती थी। प्राचीन काल से ही परीक्षा का अपना महत्व रहा है, जिसके आधार पर किसी व्यक्ति की योग्यता का आकलन किया जा सकता है। पहले मौखिक परीक्षा का ही उपयोग अधिकांशतः किया जाता था।

समय के परिवर्तन के साथ-साथ परीक्षा के स्वरूप में परिवर्तन हुआ। जहाँ अब आवश्यकतानुसार लिखित और मौखिक परीक्षाओं का उपयोग किया जाता है। विद्यालयों में आयोजित परीक्षाओं का मुख्य प्रयोजन परीक्षाओं के द्वारा छात्रों के अधिगम स्तर का आकलन करना और उन्हें प्रतिपुष्टि प्रदान करना है, जिससे छात्र अपनी कमियों को सुधार सके।

Important Points

मूल्यांकन -

  • मूल्यांकन - मूल्यांकन कक्षा अधिगम प्रक्रिया के साथ-साथ बच्चों के सीखने की गति, अवधारणा, ज्ञान, अभिवृत्ति, कौशल, व्यवहार, अनुभव आदि को जानने के लिए योजनाबद्ध तरीके से साक्ष्यों का संकलन, विश्लेषण, व्याख्या एवं सुझाव देने की प्रक्रिया है। साक्ष्यों का यह संकलन कक्षा शिक्षण अधिगम प्रक्रिया के समय शिक्षकों द्वारा विभिन्न विधियों व उपकरणों के माध्यम से किया जाता है। मूल्यांकन-प्रक्रिया जितनी बेहतर होगी विकास की गति भी उतनी ही बेहतर होगी क्योंकि मूल्यांकन के आधार पर आवश्यक सुधार कर उपलब्धि स्तर को बढ़ाया जा सकता है।
  • मूल्यांकन विशिष्ट उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए किया जाता हैं। मूल्यांकन द्वारा शिक्षकों, बच्चों व अभिभावकों को प्रतिपुष्टि प्राप्त होती हैं। यह कक्षा उन्नति का आधार होता है।

मूल्यांकन की विशेषताएँ/महत्व

  • मूल्यांकन द्वारा बच्चे के विकास के सभी पहलुओं का पता चलता है।
  • इसके द्वारा शिक्षक को सीखने के दौरान छात्रों को होने वाली कठिनाइयों का पता चलता है।
  • यह लिखित और मौखित दोनों प्रकार की हो सकती हैं।
  • शिक्षक अनेक गतिविधियों एवं उपकरणों के माध्यम से यह पता करते हैं कि बच्चों ने क्या सीखा एवं उन्हें सीखने में कहाँ मदद की आवश्यकता है।
  • इस प्रकार वे बच्चों के सीखने की प्रक्रिया को आसान बनाते हैं।

मूल्यांकन के उद्देश्य

  • विभिन्‍न विषयों में निश्चित समय उपरांत बच्चों की प्रगति जानना।
  • बच्चों के व्यवहार में हुए परिवर्तनों का पता लगाना।
  • प्रत्येक बच्चे को सीखने और समुचित विकास में मदद करना।
  • सृजनशीलता को बढ़ावा देना।
  • बच्चे की व्यक्तिगत और विशेष जरूरतों का पता लगाना।
  • बच्चों को सीखने में कठिनाइयों को दूर करने के लिए अध्यापन की उपयुक्त योजना बनाना।
  • बच्चों की रुचि जानना।
  • कक्षा में चल रही सीखने-सिखाने की प्रक्रिया को बेहतर बनाना।
  • बच्चों में परीक्षा के प्रति व्याप्त भय व दबाव को दूर करना और स्व-आकलन (Self Assessment) के लिए प्रोत्साहित करना।

 

अतः कहा जा सकता है कि अट्ठारहवीं शताब्दी के अन्त तक मौखिक परीक्षा ही मूल्याङ्कन का प्राचीनतम साधन थी।

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