पारिभाषिक शब्द निर्माण में कौन - सा सिद्धांत - नाम सामने नहीं आया है?

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Bihar Senior Secondary Teacher (GS and Hindi) Official Paper (Held On: 26 Aug, 2023 Shift 2)
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  1. परिभाषावादी
  2. संस्कृतवादी
  3. अंग्रेजीवादी
  4. उपर्युक्त में से एक से अधिक
  5. उपर्युक्त में से कोई नहीं

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Option 1 : परिभाषावादी
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 पारिभाषिक शब्द निर्माण में परिभाषावादी सिद्धांत नहीं आया। 
Key Points हिंदी भाषा को राजभाषा दर्जा मिलता ही पारिभाषिक शब्दावली के निर्माण को जो गति मिली जिसके कारण कुछ सिद्धांत और मत सामने आए, जो निम्न है। 
  • राष्ट्रीयतावादी,संस्कृतवादी या पुनरुद्धारवादी सिद्धांत
  • शब्द ग्रहणवादी, आदानवादी अंतरराष्ट्रीयतावादी सिद्धांत
  • प्रयोगवादी या लोकवादी सिद्धांत
  • मध्यमार्गी या समन्वयवादी सिद्धांत
Important Pointsपारिभाषिक शब्दावली के निर्माण के सिद्धांत। -
  • राष्ट्रीयतावादी, संस्कृतवादी या पुनरुद्धारवादी सिद्धान्त-
  • इस मत के प्रमुख समर्थक डॉ. रघुवीर जी हैं। जिनका मानना है कि भारतीय भाषाओं के लिए पारिभाषिक शब्द संस्कृत स्रोत से ही लिए जायें। संस्कृत एक समृद्ध भाषा है जिसमें नये शब्दों के निर्माण की बहुत अधिक क्षमता है। संस्कृत अधिकांश भारतीय भाषाओं की ही नहीं, बल्कि संसार की अनेक भाषाओं की जननी है। उसमें पाँच सौ धातुएँ, बीस उपसर्ग और अस्सी प्रत्यय हैं जिनमें लाखों-करोड़ों शब्दों की संरचना की जा सकती है; यथा-विधि से विधिवत्, वैध, अवैध, विधान, विधायी, विधायक, विधेय, विधिहीन इत्यादि। 
  • शब्द ग्रहणवादी, आदानवादी या अन्तर्राष्ट्रीयतावादी-
  • इस विचारधारा को मानने वालों को स्वीकारवादी भी कहा जाता है। इस मत के समर्थक हैं—सुनीति कुमार चटर्जी,शान्ति स्वरूप भटनागर,जे.सी.लूथरा आदि । इनका मत है कि अंग्रेजी तथा अन्तर्राष्ट्रीय शब्दावली को यथावत् स्वीकार कर लिया जाये,क्योंकि अन्तर्राष्ट्रीय शब्दावली का प्रचार दुनिया में सर्वाधिक है। इसको स्वीकारने से अन्य भारतीय भाषा से पारिभाषिक शब्दावली के निर्माण से मुक्ति मिलेगी, वहीं वैज्ञानिक एवं तकनीकी साहित्य के अनुवादकों की कठिनाइयाँ भी स्वतः खत्म हो जायेंगी।
  •  प्रयोगवादी या लोकवादी सिद्धान्त-
  • इस मत को मानने वालों का मत है कि पारिभाषिक शब्दों के निर्माण में आवश्यकतानुसार तत्सम तद्भव रूपों तथा अरबी-फारसी, तुर्की आदि के शब्दों का प्रयोग किया जाना चाहिए । 'हिन्दुस्तानी' के नाम पर उर्दू और उर्दू के नाम पर फारसी की शब्दावली की बहुलता के साथ विभिन्न जनपदीय बोलियों की शब्दावली अपनाने के भी पक्षधर हैं। इस मत के समर्थक पं. नेहरू तथा पं. सुन्दरलाल आदि हैं।
  • मध्यमार्गी या समन्वयवादी सिद्धान्त-
  • यह अनतिवादी सम्प्रदाय है। इस मत के समर्थक तीनों मतों की सारी अच्छाइयों को समाविष्ट करके पारिभाषिक शब्द-निर्माण के पक्षधर हैं। केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली आयोग तथा इस कार्य में प्रवृत्त अन्य अनेक संस्थाओं द्वारा प्राय: इसी समन्वित दृष्टिकोण को अपनाया जा रहा है । यह नव-आविष्कृत शब्दावली के पर्याय गढ़ने के बजाय उसे नागरी में लिप्यंतरित करके हिन्दी व्याकरण के अनुसार ढालकर ग्रहण करते हैं। यथा-रडार, पेट्रोल, प्रोटीन, कम्प्यूटरीकरण, कार्बनिक, अकार्बनिक आदि।
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Last updated on May 25, 2025

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