संज्ञा MCQ Quiz - Objective Question with Answer for संज्ञा - Download Free PDF

Last updated on Apr 25, 2025

Latest संज्ञा MCQ Objective Questions

संज्ञा Question 1:

ईदूदेद्विवचनं स्यात्?

  1. नदी 
  2. घि
  3. प्रगृह्यम्
  4. उपर्युक्तेषु एकस्मात् अधिकम्
  5. उपर्युक्तेषु कश्चन अपि नास्ति

Answer (Detailed Solution Below)

Option 3 : प्रगृह्यम्

संज्ञा Question 1 Detailed Solution

प्रश्न का अनुवाद - ईदूदेद्विवचन क्या होता है??

स्पष्टीकरण - ईदूदेद्विवचन ये "प्रगृह्य" होता है।    

'ईदूदेद्द्विवचनं प्रगृह्यम्' भवति। अर्थात् ईदूदेद्विवचनं प्रगृह्यम् 'प्रगृह्यसंज्ञा का विधान करने वाला संज्ञासूत्र ईकारान्त, अकारान्त तथा एकारान्त द्विवचन प्रगृह्य संज्ञक होते हैं। 

Important Points प्रकृति भाव संधि - 

संस्कृत व्याकरण में जब किसी संधि पद के अंतर्गत संधि योग्य दशा की प्राप्ति होने पर संध्या देश का प्रतिपादन नहीं होता है। तब उसे व्याकरण में प्रकृति भाव संधि कहा जाता है, जैसे उच्चारण भाव में आने वाले अर्थ रहित स्वर को निपात माना जाता है और जिस एकल स्वर की निपात संज्ञा हो जाती है। उसके बाद स्वर वर्ण आने पर संधि कार्य नहीं होता। इसी प्रकार प्लुत स्वर के बाद स्वर आने पर भी संधि कार्य नहीं होता है। जैसे - उ उमेश, इ इन्द्र, कृष्ण३ आगच्छ। 

प्रकृति भाव संधि/प्रगृह्य संज्ञा करने वाला सूत्र = ईदूदेद्द्विवचनं प्रगृह्यम् (उतर ऊत् एत् द्विवचनमं प्रगृह्यम्) दीर्घ ईकारान्त/ऊकारान्त/एकारान्त + स्वर वर्ण = प्रकृति भाव/
प्रगृह्य संज्ञा के कारण प्राप्त संधि आदेश बाधित हो जाता है।

प्रकृतिभाव संधि के उदाहरण -

  • हरी एतौ = हरी + एतौ = ई + ए = प्रकृति भाव 
  • विष्णू इमौ = विष्णु + इमौ ऊ + इ = प्रकृति भाव 
  • गंगे अनू =गंगे + अमू = ए + अ = प्रकृति भाव

 

इस प्रकार स्पष्ट हुआ कि ईदूदेद्विवचन ये "प्रगृह्य" होता है।    

संज्ञा Question 2:

अन्त्यहल्वर्णानां इत्संज्ञा केन सूत्रेण स्यात्?

  1. चुटू
  2. हलन्त्यम्
  3. लशक्वतद्दिते
  4. उपर्युक्तेषु कश्चन अपि नास्ति
  5. उपर्युक्तेषु कश्चन अपि नास्ति

Answer (Detailed Solution Below)

Option 2 : हलन्त्यम्

संज्ञा Question 2 Detailed Solution

प्रश्नानुवाद - अन्त्य हल् वर्णों की इत् संज्ञा किस सूत्र से होती है?

स्पष्टीकरण - हलन्त्यम् इस सूत्र के द्वारा इत् संज्ञा होती है। यह सूत्र इत्संज्ञा विधायक सूत्र है।

सूत्र - हलन्त्यम्

व्याख्या - उपदेशेऽन्त्यं हलित्स्यात्। उपदेश आद्योच्चारणम्। सूत्रेष्वदृष्टं पदं सूत्रान्तरादनुवर्तनीयं सर्वत्र। अर्थात् उपदेश अवस्था में अन्त्य हल् इत्संज्ञक होता है। उपदेश अर्थात् प्रथम उच्चारण को उपदेश कहते हैं। सूत्रों के अर्थ को परा करने के लिए जो पद कम हो, उसे आवश्यकतानुसार अन्य सूत्रों से ले लेना चाहिए।

चौदह माहेश्वर सूत्रों का प्रथम उच्चारण किया गया है। इन सूत्रों का प्रथम उच्चारण होने से इनका अन्तिम वर्ण इत्संज्ञक है।

उदाहरण - अइउण्, ऋलृक् - इन दोनों सूत्रों में अन्तिम वर्ण ण् एवं क् ये दोनों इत्संज्ञक हैं।

अतः स्पष्ट है कि हलन्त्यम् सूत्र से अन्त्य हल् वर्णों की इत् संज्ञा किस सूत्र से होती है।

Additional Information

इत् संज्ञा से सम्बंधित कुल आठ सूत्र है-

  • १.३.२ उपदेशेऽजनुनासिक इत्
    • उपदेश में विद्यमान अनुनासिक संज्ञा के स्वर की इस सूत्र से इत्संज्ञा होती है।
    • जैसे - लण् में 'अ' की इत् संज्ञा होती है।
  • १.३.३ हलन्त्यम्
    • उपदेश के अन्त में रहने वाले व्यंजन की इत्संज्ञा होती है।
    • जैसे - लण् में 'ण्' की इत् संज्ञा होती है।
  • १.३.४ न विभक्तौ तुस्माः
    • विभक्ति में स्थित तवर्ग, सकार तथा मकार की इत् संज्ञा नही होती है। 'तिङ् प्रत्यय', 'सुप् प्रत्यय' तथा सर्व तद्धित प्रत्यय यह विभक्ति संज्ञा के होते है। (विभक्तिश्च तथा प्राग्दिशो विभक्तिः सूत्र से)
  • १.३.५ आदिर्ञिटुडवः
    • उपदेशो के शुरवात में 'ञि', टु, तथा डु की इत् संज्ञा होती है।
    • उदा. डुकृञ् में 'डु'
  • १.३.६ षः प्रत्ययस्य
    • प्रत्यय के शुरवात में स्थित 'ष्' की इत् संज्ञा होती है। जैसे- ष्वुन् 
  • १.३.७ चुटू
    • प्रत्ययों के आदि में स्थित चु अर्थात् चवर्ग तथा टु अर्थात् टवर्ग की इत् संज्ञा होती है।
  • १.३.८ लशक्वतद्धिते
    • इस सूत्र से तद्धित से भिन्न अन्य प्रत्ययों के अदि में स्थित ल्, श्, कवर्ग की इत् संज्ञा होती है।
  • १.३.९ तस्य लोपः
    • उपर दिए गए ७ सूत्रों से जिनकी भी इत् संज्ञा होती है उनका इस सूत्र से लोप होता है।

संज्ञा Question 3:

अज्भिरव्यवहिताः हलः सन्ति-

  1. संयोगसंज्ञकाः 
  2. महाप्राणसंज्ञकाः
  3. पदसंज्ञकाः 
  4. उपर्युक्तेषु एकस्मात् अधिकम्
  5. उपर्युक्तेषु कश्चन अपि नास्ति

Answer (Detailed Solution Below)

Option 1 : संयोगसंज्ञकाः 

संज्ञा Question 3 Detailed Solution

प्रश्नानुवाद अचों से अव्यवहित हल् हैं-

स्पष्टीकरण - अचों से अव्यवहित हलों की संयोग संज्ञा होती है।

सूत्र - हलोऽनन्तराः संयोगः।

वृत्ति - अज्भिरव्यवहिता हलः संयोगसंज्ञाः स्युः। अर्थात् अचों से अव्यवहित हल् संयोग संज्ञक होते हैं। अर्थात् जहाँ दो हल् (व्यञ्जनों के मध्य स्वर वर्ण न हो) वहाँ संयोग संज्ञा होती है। यह सूत्र संयोग संज्ञा विधायक सूत्र है।

उदाहरण -

  • देवदत्त - यहाँ त् + त दो व्यञ्जन के साथ होने से यह संयोग संज्ञक है।
  • पत्नी - यहां त् + न दो व्यञ्जन के साथ होने से यह संयोग संज्ञक है।

 

अतः स्पष्ट है कि अचों से अव्यवहित हलों की संयोग संज्ञा होती है।

Additional Information

अन्य विकल्पों का स्पष्टीकरण -

  • महाप्राण - यह 11 बाह्य प्रयत्नों में से एक है। वर्ग के द्वितीय, चतुर्थ वर्ण और शल् (श, ष, स) इनका प्रयत्न महाप्राण होता है।
  • पद संज्ञा - 'सुप्तिङन्तं पदम्' इस सूत्र के अनुसार सुप् और तिङ् प्रत्ययों से बने शब्द पद संज्ञक होते हैं। जैसे - रामः, भवति
  • सवर्ण संज्ञा - 'तुल्यास्यप्रयत्नं सवर्णम्' इस सूत्र के अनुसार जिन वर्णों के उच्चारण स्थान और आभ्यन्तर प्रयत्न दोनों ही समान होते है। ऐसे वर्णों की सवर्ण संज्ञा होती है।

संज्ञा Question 4:

'परिक्रयणे सम्प्रदानमन्यतरस्याम्' इत्यनेन सूत्रेण विकल्पेन सम्प्रदान - संज्ञा भवति -

  1. ईप्सिततमस्य 
  2. साधकतमस्य
  3. ईप्सितस्य
  4. उपर्युक्तेषु एकस्मात् अधिकम्
  5. उपर्युक्तेषु कश्चन अपि नास्ति

Answer (Detailed Solution Below)

Option 2 : साधकतमस्य

संज्ञा Question 4 Detailed Solution

प्रश्न अनुवाद - 'परिक्रयणे सम्प्रदानमन्यतरस्याम्' इस सूत्र के द्वारा किसकी विकल्प से सम्प्रदान - संज्ञा होती है -

'परिक्रयणे' अर्थ में सम्‍प्रदान विकल्‍प से होता है । निश्चित काल के लिये किसी को वेतन या मजदूरी पर रखने को परिक्रयण कहते है । इसके जो अत्‍यन्‍त उपकारक हो, उनकी विकल्‍प से सम्‍प्रदान संज्ञा होती है । विकल्‍प से अर्थात् परिक्रयण में करण कारक तदनुसार तृतीया पहले से ही लगी हुई है, किन्‍तु विकल्‍प से करण के स्‍थान पर सम्‍प्रदान का प्रयोग भी किया जा सकता है।

स्पष्टीकरण -
'परिक्रयणे' अर्थ में साधकतम कारक की विकल्प से सम्‍प्रदान संज्ञा होती है ।

उदाहरण -

शतेन शताय वा परिक्रीत: अर्थात् सौ रूपये पर रखा हुआ है । 
यहां पर शत परिक्रयण का साधन है, अत्‍यन्‍त उपकारक है । अत: 'परिक्रयणे सम्प्रदानमन्यतरस्याम्' सूत्र से शत की सम्‍प्रदान संज्ञा होने पर चतुर्थी (शताय) तथा सम्‍प्रदान संज्ञा के अभाव में करण में तृतीया विभक्ति होने से 'शतेन' बना । 


अत: इस प्रकार स्पष्ट है कि उचित विकल्प 'साधकतमस्य' सही है I

संज्ञा Question 5:

क्रियासिद्धौ प्रकृष्टोपकारकस्य भवति -

  1. कर्मसंज्ञा
  2. करणसंज्ञा
  3. कर्तृसंज्ञा 
  4. उपर्युक्तेषु एकस्मात् अधिकम्
  5. उपर्युक्तेषु कश्चन अपि नास्ति

Answer (Detailed Solution Below)

Option 2 : करणसंज्ञा

संज्ञा Question 5 Detailed Solution

प्रश्न अनुवाद - क्रिया की सिद्धि में प्रकृष्ट उपकारक की होती है -

प्रकृष्ट उपकारक अर्थात् जो सर्वाधिक सहायक कारक हो ।

स्पष्टीकरण -

  • सूत्र - साधकतं करणम् अर्थात् क्रिया की सिद्धि में जो सबसे प्रकृष्ट उपकारक अर्थात् जो सर्वाधिक सहायक कारक हो, उसकी करण संज्ञा होती है ।

उदाहरण -

रामेण बाणेन हतो बाली अर्थात् राम ने बाण से बाली को मारा ।
यहां बाण के सहायक कारक होने से ही हनन क्रिया हुई है । अत: इसीलिये यह प्रकृष्ट उपकारक है । इसीलिये इसकी करण संज्ञा हुई है ।

अत: इस प्रकार स्पष्ट है कि उचित विकल्प 'करणसंज्ञा' सही है I

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व्याकरणे लोपस्य तात्पर्यम्‌ अस्ति

  1. विस्मरणं लोपः
  2. संज्ञा लोपः
  3. अश्रवणं लोपः
  4. अदर्शनं लोपः

Answer (Detailed Solution Below)

Option 4 : अदर्शनं लोपः

संज्ञा Question 6 Detailed Solution

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प्रश्न का हिन्दी अनुवाद - व्याकरण में लोप का तात्पर्य होता है -

स्पष्टीकरण -

  • पाणिनि अष्टाध्यायी में वर्णित सूत्र - 'अदर्शनं लोपः।'
  • इस सूत्र की वृत्ति के अनुसार - 'प्रसक्तस्यादर्शनं लोपसंज्ञं स्यात्।' (प्रस्तुत का अदर्शन होना ही लोप कहलाता है।)

 

अतः स्पष्ट है कि पाणिनीय व्याकरण में लोप का तात्पर्य है - न दिखाई देना अर्थात् 'अदर्शन'। 

कस्मिन् विकल्पे नदी-संज्ञको शब्दः वर्तते ?

  1. कवी 
  2. हरिः 
  3. लक्ष्मीः 
  4. इन्द्रः

Answer (Detailed Solution Below)

Option 3 : लक्ष्मीः 

संज्ञा Question 7 Detailed Solution

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प्रश्न अनुवाद - किस विकल्प में नदी संज्ञक शब्द है ?

  • पाणिनीय अष्टाध्यायी में सूत्रों के द्वारा नदी संज्ञा का विधान किया है। यानी ये सूत्र बताते है कि किन शब्दों को नदी संज्ञा नाम से जाना जाए। स्त्रीलिंग शब्द ईकारान्त अथवा ऊकारान्त है, उन शब्दों को नदी कहते है। ईयङ् और ऊवङ् ये प्रत्यय जिन को होते है, वे शब्द नदी नहीं होते है। परन्तु स्त्री (महिला इस अर्थ में) यह शब्द ईयङ् प्रत्यय वाला होने के बावजूद भी स्त्री इस शब्द की नदी संज्ञा होती है।

स्पष्टीकरण - 

सूत्र - यू स्त्र्याख्यौ नदी अर्थात् दीर्घ ईकारान्त, ऊकारान्त नित्य स्त्रीलिंग शब्दों की नदी संज्ञा होती है। जैसे - नदी, लक्ष्मी, कुमारी आदि 

विकल्प स्पष्टीकरण - 

  1. कवी - यह शब्द इकारान्त पुल्लिङ्ग शब्द है। परन्तु यहां कवी शब्द की जगह कवि शब्द होना था I
  2. हरिः - इकारान्त पुल्लिङ्ग शब्द है।
  3. लक्ष्मीः - ईकारान्त स्त्रीलिंग संज्ञा शब्द है।
  4. इन्द्रः - अजन्त अकारान्त पुल्लिङ्ग शब्द है।

 

इस प्रकार स्पष्ट है कि विकल्प में नदी संज्ञक शब्द लक्ष्मीः है।

अधोलिखित पदों में कौन-सा ‘प्रगृह्य’ संज्ञक है?

  1. हरी
  2. विष्णू
  3. गङ्गे
  4. उपर्युक्त सभी

Answer (Detailed Solution Below)

Option 4 : उपर्युक्त सभी

संज्ञा Question 8 Detailed Solution

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‘ईदूदेद् द्विवचनं प्रगृह्यं’ सूत्रानुसार ईत् (ईकारान्त्), ऊत् (ऊकारान्त) तथा एत् (एकारान्त) द्विवचन की प्रगृह्य संज्ञा होती है अर्थात् द्विवचन में यदि शब्द के अन्त में ई, ऊ या ए आये तो उनकी प्रगृह्य संज्ञा होती है।

जैसे- हरि शब्द के प्रथमा तथा द्वितीया विभक्ति के द्विवचन में ‘हरी’ पद बनता है तो उसकी प्रगृह्य संज्ञा होगी। वैसे ही `विष्णू' ऊकारान्त और `गङ्गे' भी एकारान्त द्विवचन में हैं अतः इनकी भी प्रगृह्य संज्ञा होगी।

अतः स्पष्ट है कि सभी विकल्प सही है।

अज्भिरव्यवहिताः हलः सन्ति-

  1. संयोगसंज्ञकाः 
  2. महाप्राणसंज्ञकाः
  3. पदसंज्ञकाः 
  4. सवर्णसंज्ञकाः 

Answer (Detailed Solution Below)

Option 1 : संयोगसंज्ञकाः 

संज्ञा Question 9 Detailed Solution

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प्रश्नानुवाद अचों से अव्यवहित हल् हैं-

स्पष्टीकरण - अचों से अव्यवहित हलों की संयोग संज्ञा होती है।

सूत्र - हलोऽनन्तराः संयोगः।

वृत्ति - अज्भिरव्यवहिता हलः संयोगसंज्ञाः स्युः। अर्थात् अचों से अव्यवहित हल् संयोग संज्ञक होते हैं। अर्थात् जहाँ दो हल् (व्यञ्जनों के मध्य स्वर वर्ण न हो) वहाँ संयोग संज्ञा होती है। यह सूत्र संयोग संज्ञा विधायक सूत्र है।

उदाहरण -

  • देवदत्त - यहाँ त् + त दो व्यञ्जन के साथ होने से यह संयोग संज्ञक है।
  • पत्नी - यहां त् + न दो व्यञ्जन के साथ होने से यह संयोग संज्ञक है।

 

अतः स्पष्ट है कि अचों से अव्यवहित हलों की संयोग संज्ञा होती है।

Additional Information

अन्य विकल्पों का स्पष्टीकरण -

  • महाप्राण - यह 11 बाह्य प्रयत्नों में से एक है। वर्ग के द्वितीय, चतुर्थ वर्ण और शल् (श, ष, स) इनका प्रयत्न महाप्राण होता है।
  • पद संज्ञा - 'सुप्तिङन्तं पदम्' इस सूत्र के अनुसार सुप् और तिङ् प्रत्ययों से बने शब्द पद संज्ञक होते हैं। जैसे - रामः, भवति
  • सवर्ण संज्ञा - 'तुल्यास्यप्रयत्नं सवर्णम्' इस सूत्र के अनुसार जिन वर्णों के उच्चारण स्थान और आभ्यन्तर प्रयत्न दोनों ही समान होते है। ऐसे वर्णों की सवर्ण संज्ञा होती है।

'परिक्रयणे सम्प्रदानमन्यतरस्याम्' इत्यनेन सूत्रेण विकल्पेन सम्प्रदान - संज्ञा भवति -

  1. ईप्सिततमस्य 
  2. उत्तमर्णस्य 
  3. ईप्सितस्य
  4. साधकतमस्य

Answer (Detailed Solution Below)

Option 4 : साधकतमस्य

संज्ञा Question 10 Detailed Solution

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प्रश्न अनुवाद - 'परिक्रयणे सम्प्रदानमन्यतरस्याम्' इस सूत्र के द्वारा किसकी विकल्प से सम्प्रदान - संज्ञा होती है -

'परिक्रयणे' अर्थ में सम्‍प्रदान विकल्‍प से होता है । निश्चित काल के लिये किसी को वेतन या मजदूरी पर रखने को परिक्रयण कहते है । इसके जो अत्‍यन्‍त उपकारक हो, उनकी विकल्‍प से सम्‍प्रदान संज्ञा होती है । विकल्‍प से अर्थात् परिक्रयण में करण कारक तदनुसार तृतीया पहले से ही लगी हुई है, किन्‍तु विकल्‍प से करण के स्‍थान पर सम्‍प्रदान का प्रयोग भी किया जा सकता है।

स्पष्टीकरण -
'परिक्रयणे' अर्थ में साधकतम कारक की विकल्प से सम्‍प्रदान संज्ञा होती है ।

उदाहरण -

शतेन शताय वा परिक्रीत: अर्थात् सौ रूपये पर रखा हुआ है । 
यहां पर शत परिक्रयण का साधन है, अत्‍यन्‍त उपकारक है । अत: 'परिक्रयणे सम्प्रदानमन्यतरस्याम्' सूत्र से शत की सम्‍प्रदान संज्ञा होने पर चतुर्थी (शताय) तथा सम्‍प्रदान संज्ञा के अभाव में करण में तृतीया विभक्ति होने से 'शतेन' बना । 


अत: इस प्रकार स्पष्ट है कि उचित विकल्प 'साधकतमस्य' सही है I

एषु इत् संज्ञा विधायकं सूत्रं नास्ति-

  1. आदिर्ञिटुडवः 
  2. लशक्वतद्धिते 
  3. उरणरपरः  
  4. हलन्त्यम् 

Answer (Detailed Solution Below)

Option 3 : उरणरपरः  

संज्ञा Question 11 Detailed Solution

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प्रश्न का हिंदी भाषांतर : इन में से कौन सा इत् संज्ञा विधायक सूत्रं नहीं है?

इत् संज्ञा :

  • इत् - इण् धातु से गमनार्थ मे निष्पन्न पद है।
  • इत् संज्ञक वर्णों का कार्य अनुबन्ध बनाकर अन्त मे निकल जाना है।
  • अतः, इत् संज्ञा होने से इन अन्तिम वर्णों का उपयोग प्रत्याहार बनाने के लिए केवल अनुबन्ध हेतु किया जाता है, लेकिन व्याकरणीय प्रक्रिया मे इनकी गणना नही की जाती है अर्थात् इनका प्रयोग नही होता है।
  • हलन्‍त्‍यम् इस सूत्र से उपदेश की अवस्‍था में किसी भी वर्णसमुदाय के अन्तिम हल् वर्ण (व्यञ्जन वर्ण ) की इत् संज्ञा होती है।
  • प्रत्याहारोंं में भी अंतिम वर्ण इत् संज्ञक होतें है।

इत् संज्ञा विधायक सूत्र :

किन वर्णों की इत् संज्ञा होती है, इसका निर्देश पाणिनि ने निम्नलिखित सूत्रों द्वारा किया है - 

  • उपदेशेऽजनुनासिक इत् (1/3/2)
    • सूत्रार्थ - उपदेश की अवस्था में अनुनासिक अच् इत्संज्ञक होता है ।
    • जैसे - क्तवतुॅ मे उकार इत्संज्ञक वर्ण है।
  • हलन्त्यम् (1/3/3)
    • सूत्रार्थ - उपदेश की अवस्था में अन्तिम हल् वर्ण की इत् संज्ञा होती है ।
    • जैसे- ल्यप् में पकार इत्संज्ञक वर्ण है ।
  • लशक्वतद्धिते (1/3/8)
    • सूत्रार्थ - उपदेश की अवस्था में प्रत्यय के आदि में स्थित लकार की, शकार की, और कवर्ग ( क,ख,ग,घ,ङ ) की इत् संज्ञा होती है किन्तु वह किसी तद्धित का प्रत्यय न हो ।
    • जैसे- ल्युट् में लकार की, क्त और क्तवतुॅ प्रत्यय में ककार की इत् संज्ञा होती है। 
  • चुटू (1/3/7) 
    • सूत्रार्थ - उपदेश की अवस्था में जिस प्रत्यय के आदि में चवर्ग और टवर्ग के वर्ण होगें, उनकी चुटू सूत्र से चवर्ग और टवर्ग की इत् संज्ञा होती है ।
    • जैसे - ण्वुल् प्रत्यय में णकार इत्संज्ञकवर्ण  है।
  • षः प्रत्यय (1/3/6)
    • सूत्रार्थ -  यह इत्संज्ञक सूत्र प्रत्यय के आदि में स्थित षकार की की इत् संज्ञा करता है।
    • जैसे - ष्वुन् प्रत्यय में षकार की इत् संज्ञा ।
  • आदिर्ञिटुडवः (1/3/5)
    • सूत्रार्थ - यह सूत्र धातु के आदि में स्थित ञि,टु तथा डु की इत् संज्ञा करता है।
    • जैसे- डुकृञ्

तस्य लोपः (1। 3। 9) इस सूत्र से इत् संज्ञक वर्णोंं का लोप होता है

अतः स्पष्ट है, 'उरणरपरः ' यह इस प्रश्न का सही उत्तर है।

इत्संज्ञा - विधायकं सूत्रं नास्ति -

  1. उपदेशेऽनुनासिक इत्
  2. षः प्रत्ययस्य 
  3. आद् गुण: 
  4. हलन्त्यम्

Answer (Detailed Solution Below)

Option 3 : आद् गुण: 

संज्ञा Question 12 Detailed Solution

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प्रश्नार्थ - इत्संज्ञा विधायक सूत्र नहीं है-आद् गुण: 
आद् गुण: - गुण संज्ञा विधायक सूत्र है

स्पष्टीकरण - इत् संज्ञा से सम्बंधित कुल आठ सूत्र है-

  • १.३.२ उपदेशेऽनुनासिक इत्
    • उपदेश में विद्यमान अनुनासिक संज्ञा के स्वर की इस सूत्र से इत्संज्ञा होती है।
    • जैसे - लण् में 'अ' की इत् संज्ञा होती है।
  • १.३.३ हलन्त्यम्
    • उपदेश के अन्त में रहने वाले व्यंजन की इत्संज्ञा होती है।
    • जैसे - लण् में 'ण्' की इत् संज्ञा होती है।
  • १.३.४ न विभक्तौ तुस्माः
    • विभक्ति में स्थित तवर्ग, सकार तथा मकार की इत् संज्ञा नही होती है। 'तिङ् प्रत्यय', 'सुप् प्रत्यय' तथा सर्व तद्धित प्रत्यय यह विभक्ति संज्ञा के होते है। (विभक्तिश्च तथा प्राग्दिशो विभक्तिः सूत्र से)
  • १.३.५ आदिर्ञिटुडवः
    • उपदेशो के शुरवात में 'ञि', टु, तथा डु की इत् संज्ञा होती है।
    • उदा. डुकृञ् में 'डु'
  • १.३.६ षः प्रत्ययस्य
    • प्रत्यय के शुरवात में स्थित 'ष्' की इत् संज्ञा होती है। जैसे- ष्वुन् 
  • १.३.७ चुटू
    • प्रत्ययों के आदि में स्थित चु अर्थात् चवर्ग तथा टु अर्थात् टवर्ग की इत् संज्ञा होती है।
  • १.३.८ लशक्वतद्धिते
    • इस सूत्र से तद्धित से भिन्न अन्य प्रत्ययों के अदि में स्थित ल्, श्, कवर्ग की इत् संज्ञा होती है।
  • १.३.९ तस्य लोपः
    • उपर दिए गए ७ सूत्रों से जिनकी भी इत् संज्ञा होती है उनका इस सूत्र से लोप होता है।

उपर्युक्त ८ सूत्रों से इत्संज्ञा का सम्बन्ध होता है इन में 'चुटू' यह शुद्ध सूत्र है किन्तु पर्यायों से 'चुटूः' यह अशुद्ध होता है।

'क्त' प्रत्यय संज्ञा है 

  1. टि 
  2. निष्ठा 
  3. नदी 
  4. पि

Answer (Detailed Solution Below)

Option 2 : निष्ठा 

संज्ञा Question 13 Detailed Solution

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सूत्र- क्तक्तवतू निष्ठा।

स्पष्टीकरण- इस सूत्र के अनुसार 'क्त' और 'क्तवतु' इन दों प्रत्ययोंकी संज्ञा 'निष्ठा' होती है।

इसलिए उपर्युक्त के पर्यायों में से उचित पर्याय 'निष्ठा' है। अन्य संज्ञाओं का उद्देश्य भिन्न है।

Additional Information

  • टि:- अन्त्य अच् की 'टि'संज्ञा होती है|
  • नदी:- दीर्घ-ईकारान्त और दीर्घ-ऊकारान्त शब्दों की 'नदी'संज्ञा होती है|

परस्परं सवर्णसंज्ञा न स्यात्-

  1. अ - आ
  2. इ - ई
  3. ऋ - लृ
  4. ए - ऐ

Answer (Detailed Solution Below)

Option 4 : ए - ऐ

संज्ञा Question 14 Detailed Solution

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प्रश्नार्थ - परस्परं सवर्णसंज्ञा नहीं है-

सूत्र - तुल्यास्यप्रयत्नं सवर्णम्

सूत्र स्पष्टीकरण - यह सूत्र एक संज्ञासूत्र है। इस सूत्र से तालु आदि स्थान तथा आभ्यंतर प्रयत्न ये दोनों एक दुसरे से तुल्य हो उन्हें सवर्ण कहते है।

वर्णों में उच्चारण स्थान-

सूत्र वर्ण उच्चारण स्थान
अकुहविसर्जनीयानां कण्ठः अ, आ, क, ख, ग, घ, ङ वर्ग, ह, विसर्ग इन वर्णों का उच्चारण स्थान कण्ठ होता है।
इचुयशानां तालुः  इ, ई, च वर्ग (च, छ, ज, झ, ञ) य, श इन वर्णों का उच्चारण स्थान तालु होता है।
ऋटुरषाणां मूर्धा ऋ, ट वर्ग, र,  इन वर्णों का उच्चारण स्थान मूर्धा होता है।
लृतुलसानां दन्ताः लृ, त वर्ग, ल, स इन वर्णों का उच्चारण स्थान दन्त होता है।
उपूपध्मानीयानामोष्ठौ उ, ऊ, प वर्ग, उपध्मानीय विसर्ग इन वर्णों का उच्चारण स्थान ओष्ठ होता है।
ञमङणनानां नासिका च ञ, म, ङ, ण, न इन पाँचो वर्णों का उच्चारण स्थान नासिका होता है।
एदैतोः कण्ठतालु ए, ऐ इन वर्णों का उच्चारण स्थान कण्ठ और तालु होता है।
ओदौतोः कण्ठोष्ठम् ओ, औ इन वर्णों का उच्चारण स्थान कण्ठ और ओष्ठ होता है।
वकारस्य दन्तोष्ठम् इन वर्णों का उच्चारण स्थान दन्त और ओष्ठ होता है।
जिह्वामूलीयस्य जिह्वामूलम् जिह्वामूलीय विसर्ग इसका उच्चारण स्थान जिह्वामूल होता है।
नासिका अनुस्वारस्य अनुस्वार इसका उच्चारण स्थान नासिका होता है

 

Confusion Pointsप्रस्तुत तालिका से ज्ञात होता है-

ए-ऐ की आपस मे सवर्ण संज्ञा नही होती "ऋलृवर्णयो सावर्ण्यम् वाच्यम्" वार्तिक से ऋ लृ वर्ण की आपस मे सवर्ण संज्ञा हो जाती है अत: ए - ऐ परस्पर सवर्णसंज्ञा नहीं है।

गुण संज्ञा भवति

  1. ए ऐ ओ
  2. अ ए ओ
  3. अ उ ओ
  4. आ ऐ औ

Answer (Detailed Solution Below)

Option 2 : अ ए ओ

संज्ञा Question 15 Detailed Solution

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प्रश्नानुवाद - गुण संज्ञा होती है-

स्पष्टीकरण - अ, ए, ओ - इन तीन वर्णों की गुण संज्ञा होती है। 

सूत्र- अदेङ् गुणः।

  • सूत्रार्थ - यह सूत्र गुण संज्ञा करने वाला सूत्र है। यह सूत्र गुण संज्ञक वर्णों को बताता है। ह्रस्व अकार और एङ् (ए, ओ) वर्ण गुण संज्ञक वर्ण हैं। 
  • यह सूत्र गुण संज्ञा विधायक सूत्र है। यह गुण संज्ञक वर्णों की जानकारी देता है। गुण संधि होने पर गुण वर्ण ही आदेश होते हैं। 

उदाहरण-

  • रमा + ईशः = रमेश ः
  • उपर्युक्त उदाहरण में आ + ई = ए, जो  वर्ण आदेश हुआ है, वह गुण संज्ञक वर्ण हैं।

 

अतः स्पष्ट है कि अ, ए, ओ - इन तीन वर्णों की गुण संज्ञा होती है

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