संस्कृत वाङ्गमय MCQ Quiz - Objective Question with Answer for संस्कृत वाङ्गमय - Download Free PDF
Last updated on Jun 12, 2025
Latest संस्कृत वाङ्गमय MCQ Objective Questions
संस्कृत वाङ्गमय Question 1:
कल्पसूत्राणामुचितः क्रमः चीयताम्
Answer (Detailed Solution Below)
संस्कृत वाङ्गमय Question 1 Detailed Solution
प्रश्नानुवाद - कल्प सूत्र का उचित क्रम चुनें।
स्पष्टीकरण -
कल्पसूत्र का उचित क्रम है - श्रौतसूत्रम्, गृह्मसूत्रम्, धर्मसूत्रम्, शुल्वसूत्रम्।
कल्पसूत्र -
कल्प वेद के छह अंगों (वेदांगों) में एक है जो कर्मकाण्डों का विवरण देता है।इन कल्पसूत्रों का प्रधान प्रतिपाद्य विषय है संस्कारों, यज्ञों और वर्णाश्रम धर्मों की व्याख्या, विधिविधान तथा अनुष्ठानचर्या। कल्प का तात्पर्य है - 'वेद (संहिता, ब्राह्मण, आरण्यकादि) विहित कर्मो, अनुष्ठानों का क्रमपूर्वक कल्पना करनेवाला शास्त्र या ग्रंथ'। "कल्पो वेदविहितानां कर्मणमानुपूर्व्येण कल्पनाशास्त्रम्" (ऋग्वेदप्रातिशाख्य की वर्गद्वयवृत्ति)। कल्पसूत्रों का तीन मुख्य वर्गो में विभाजन किया गया है– (१) श्रौतसूत्र, (२) गृह्यसूत्र और (३) धर्मसूत्र। इसके अतिरिक्त (४) शुल्बसूत्र भी एक भेद हैं।
- श्रौतसूत्र - श्रौतसूत्र में मन्त्र-संहिता के कर्मकाण्ड को स्पष्ट किया जाता है।
- गृह्यसूत्र - गृह्यसूत्र में कुलाचार का वर्णन होता है।
- धर्मसूत्र - धर्मसूत्र में धर्माचार का वर्णन है।
- शुल्बसूत्र - शुल्बसूत्र में ज्यामिति आदि विज्ञान वर्णित है।
संस्कृत वाङ्गमय Question 2:
वेदाङ्गानामुचितं क्रमं चिनुत
Answer (Detailed Solution Below)
संस्कृत वाङ्गमय Question 2 Detailed Solution
प्रश्नार्थ - वेदांगो का उचित क्रम चुनिए-
वेदाङ्ग -
वेदाङ्ग की कुल संख्या 6 है, जिसका क्रम इस प्रकार है - शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द और ज्योतिष।
मुण्डकोपनिषद में आता है-
तस्मै स हो वाच। द्वै विद्ये वेदितब्ये इति ह स्म यद्ब्रह्म विद्यौ वदंति परा चैवोपरा च॥ तत्रापरा ॠग्वेदो यजुर्वेद: सामवेदोऽर्थ वेद: शिक्षा कल्पो व्याकरणं निरुक्तं छन्दोज्योतिषमिति। अथ परा यथा तदक्षरमधिगम्यते॥
अर्थात्, मनुष्य को ज्ञातव्य दो विद्याएं हैं - परा और अपरा। उनमें चारों वेदों के शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छंद, ज्योतिष - ये सब 'अपरा' विद्या हैं तथा जिससे वह अविनाशी परब्रह्म तत्त्व से जाना जाता है, वही 'परा' विद्या है।'
छः वेदाङ्ग -
- शिक्षा - वैदिक वाक्यों के स्पष्ट उच्चारण हेतु इसका निर्माण हुआ। वैदिक शिक्षा सम्बंधी प्राचीनतम साहित्य 'प्रातिशाख्य' है।
- कल्प - वैदिक कर्मकाण्डों को सम्पन्न करवाने के लिए निश्चित किए गये विधि नियमों का प्रतिपादन 'कल्पसूत्र' में किया गया है।
- व्याकरण - इसके अन्तर्गत समासों एवं सन्धि आदि के नियम, नामों एवं धातुओं की रचना, उपसर्ग एवं प्रत्यय के प्रयोग आदि के नियम बताये गये हैं। पाणिनि की अष्टाध्यायी प्रसिद्ध व्याकरण ग्रंथ है।
- निरूक्त - शब्दों की व्युत्पत्ति एवं निर्वचन बतलाने वाले शास्त्र 'निरूक्त' कहलातें है। क्लिष्ट वैदिक शब्दों के संकलन ‘निघण्टु‘ की व्याख्या हेतु यास्क ने 'निरूक्त' की रचना की थी, जो भाषा शास्त्र का प्रथम ग्रंथ माना जाता है।
- छन्द - वैदिक साहित्य में मुख्य रूप से गायत्री, त्रिष्टुप, जगती, वृहती आदि छन्दों का प्रयोग किया गया है। पिंगल का छन्दशास्त्र प्रसिद्ध है।
- ज्योतिष - इसमें ज्योतिष शास्त्र के विकास को दिखाया गया है। इसकें प्राचीनतम आचार्य 'लगध मुनि' है।
संस्कृत वाङ्गमय Question 3:
कस्य वेदस्य किमपि आरण्यकम् नास्त्येव?
Answer (Detailed Solution Below)
संस्कृत वाङ्गमय Question 3 Detailed Solution
- व्युत्पत्ति की दृष्टी से आरण्यक शब्द अरण्य शब्द में वृञ् प्रत्यय के योग से निष्पन्न हुआ है।
- इसका अर्थ है अरण्य में होनेवाला वाला।
- 'अरण्ये भवमिति आरण्यकम्' ऐसे आरण्य का अर्थ बताया जाता है।
- आरण्यकों का मुख्य विषय यज्ञीय अनुष्ठानों के आध्यात्मिक मीमांसा है।
- ब्रह्मचर्य का निरन्तर अनुसरण करने वाले आरण्यकों का अध्ययन करने के अधिकारि हैं।
- ऋग्वेद
- ऐतरेय आरण्यक
- कौषीतकि आरण्यक या शांखायन आरण्यक
- सामवेद
- तवल्कार (या जैमिनीयोपनिषद्) आरण्यक
- छान्दोग्य आरण्यक
- यजुर्वेद
- शुक्ल
- वृहदारण्यक
- कृष्ण
- तैत्तिरीय आरण्यक
- मैत्रायणी आरण्यक
- अथर्ववेद
- यद्यपि अथर्ववेद का पृथक् से कोई आरण्यक प्राप्त नहीं होता है, तथापि उसके गोपथ ब्राह्मण में आरण्यकों के अनुरूप बहुत सी सामग्री मिलती है।
संस्कृत वाङ्गमय Question 4:
'आर्चज्योतिष' इत्यस्य ज्योतिषवेदांगस्य प्रणेता कः ?
Answer (Detailed Solution Below)
संस्कृत वाङ्गमय Question 4 Detailed Solution
- लगध मुनि का आर्चज्योतिषवेदाङ्ग ज्योतिष का ग्रन्थ है।
- इसे सर्वाधिक प्राचीन ज्योतिष ग्रन्थ माना जाता है।
- विविध वेदों के विविध ज्योतिष ग्रन्थ हैं।
संस्कृत वाङ्गमय Question 5:
अग्नेर्निर्वचनमिदम् नास्ति
Answer (Detailed Solution Below)
संस्कृत वाङ्गमय Question 5 Detailed Solution
प्रश्न का हिंदी भाषांतर : यास्कसंमत अग्नि का निर्वचन क्या नहीं है?
अग्नि शब्द का निर्वचन:
'अग्निः कस्मात्?'
- अग्रणीर्भवति' - यह अग्रणी होता है यह मनुष्यों का इतना अधिक उपकार करता है कि सभी देवों में प्रमुख हो जाता है, अतः अग्नि कहलाता है।
- 'अग्र यज्ञेषु प्रणीयते' - यज्ञ सम्बन्धी कार्यों में यह सबसे पहले लाया जाता है। यज्ञों में सबसे आगे लाये जाने के कारण अग्रणी होता है, अतः अग्नि कहलाता है।
- अङ्गं नयति सन्नममानः - यह तृण, काष्ठ इत्यादि को आश्रय देता हुआ भी उसे अपना अङ्ग बना लेता है, अतः अग्नि कहलाता है। जिस भी किसी पदार्थ को अग्नि में रखा जाता है उसे जलाकर अथवा बिना जलाये अपने समान सन्तप्त अथवा दिप्तिमान् बना देता है। अङ्ग नयतीति अङ्गनी अग्नि ।
- 'अक्नोपनो भवतीति स्थौलाष्ठीविः' - स्थौलाष्टीवि आचार्य के अनुसार यह अक्नोपम (रूखा या शुष्क) बना देने वाला होता है, अतः अग्नि कहलाता है। इस प्रकार नञ् पूर्वक स्नेहार्धक वनुषी धातु से किन' प्रत्यय होकर अहनी - अग्नि बनता है।
- 'त्रिभ्य आख्यातेा जायत इति शाकपूणि इतात् अक्तात् दग्धाद्वा नीतात् - शाकपूणि आचार्य के अनुसार 'इण्' 'अज्जू' अथवा 'दह्' तथा 'णीञ्' इन तीनों धातुओं से अग्नि शब्द बना है, क्योंकि अग्नि गतिशील, पदार्थव्यञ्जक दाहक और गतिप्रदान करने वाला है। इण् धातु से अकार 'अञ्जू' या 'दह्' धातु से दकार और 'णीञ्' से 'नी' लेकर अग्नि शब्द निष्पन्न होता है।
अतः स्पष्ट है, 'अङ्गगयति गमयति' यह अग्नि का निर्वचन नहीं है।
Top संस्कृत वाङ्गमय MCQ Objective Questions
निम्नलिखित में से कौन-सा ग्रन्थ ‘चतुर्विंशतिसाहस्रीसंहिता’ के नाम से ख्यात है?
Answer (Detailed Solution Below)
संस्कृत वाङ्गमय Question 6 Detailed Solution
Download Solution PDF‘चतुर्विंशतिसाहस्रीसंहिता’ को तोड़कर देखें तो ‘चतुर्विंशति + साहस्री + संहिता’ प्राप्त होता है। जिनके अर्थ इस प्रकार है-
- चतुर्विंशति- चौबीस
- साहस्री- हजार
- संहिता- एक साथ हो।
अर्थात् चौबीस हजार श्लोक जहाँ हो, रामायण में चौबीस हजार श्लोक है, अतःउसे ‘चतुर्विंशतिसाहस्रीसंहिता’ कहेंगे।
Key Points
- विद्वानों में एक और प्रसिद्धी है कि प्रत्येक एक हजार श्लोक के पश्चात् इसमें गायित्री मन्त्र का एक वर्ण आता है।
- रामायण का विभाजन सात काण्डों में हुआ है-
- बालकाण्ड- 77 सर्ग
- अयोद्ध्याकाण्ड- 129 सर्ग
- अरण्यकाण्ड- 75 सर्ग
- किष्किन्धाकाण्ड- 67 सर्ग
- सुन्दरकाण्ड- 68 सर्ग
- लङ्काकाण्ड (युद्धकाण्ड)- 128 सर्ग
- उत्तरकाण्ड- 111 सर्ग
Additional Information
- महाभारत में एक लाख श्लोक हैं इसलिये इसे ‘शत्साहस्रीसंहिता’ भी कहते हैं।
"काव्यादर्श" के रचयिता हैँ
Answer (Detailed Solution Below)
संस्कृत वाङ्गमय Question 7 Detailed Solution
Download Solution PDFकाव्यादर्श
- काव्यादर्श एक रीतिसम्प्रदाय का साहित्यशास्त्र सम्बन्धी ग्रन्थ है।
- काव्यादर्श मे तीन परिच्छेद मिलते है।
- प्रथम परिच्छेद - काव्य परिभाषा, काव्यभेद, महाकाव्यादि के लक्षण आदि।
- द्वितीय परिच्छेद - 35 अर्थालङ्कारो के भेद - प्रभेद के साथ लक्षण उदाहरनादि।
- तृतीय परिच्छेद - यमक का विवेचन है।साथ ही, चित्रकाव्य, स्वरनियम, स्थाननियम, वर्णनियम तथा प्रहेलिका इत्यादि के लक्षण एवं उदाहरण भी दे दिए गए हैं।
- ग्रंथ के अन्त में काव्यदोषों का परिचय है।
दण्डी
- दंडी संस्कृत के प्रसिद्ध साहित्यकार थे।
- जो छ्ठी शताब्दी के अंत और सातवीं शताब्दी के प्रारंभ में सक्रिय थे।
- दंडी की की तीन रचनाएँ प्रसिद्ध हैं- 1. ‘काव्यादर्श’, 2. ‘दशकुमार चरित’ और 3. ‘अवंतिसुन्दरी कथा’
‘श्रीमद्भगवद्गीता’ में कुल कितने अध्याय हैं?
Answer (Detailed Solution Below)
संस्कृत वाङ्गमय Question 8 Detailed Solution
Download Solution PDF‘श्रीमद्भगवद्गीता’ महाभारत के भीष्मपर्व में युद्ध के पूर्व कृष्ण द्वारा अर्जुन को दिया गया उपदेश है। जो कुल ‘अठारह (18)’ अध्याय में वर्णित है।
Additional Information
विशेष:- महाभारत में अठारह संख्या अत्यंत महत्वपूर्ण है-
- महाभारत के अद्ध्यायों की संख्या- 18
- युद्ध के दिनों की सन्ख्या- 18
- श्रीमद्भगवद्गीता के अद्ध्यायों की संख्या- 18
- उपगीता के अद्ध्यायों की संख्या- 18
अतः स्पष्ट है कि ‘श्रीमद्भगवद्गीता’ में कुल ‘अठारह (18)’ अध्याय में वर्णित है।
निम्नलिखित में से कौन सी कृति महाकवि कालिदास विरचित नहीं है?
Answer (Detailed Solution Below)
संस्कृत वाङ्गमय Question 9 Detailed Solution
Download Solution PDFकालिदास विरचित कृतियों की तालिका:–
रचना |
विधा |
रघुवंशम्, कुमारसंभवम् |
महाकाव्य |
मेघदूतम् |
खण्डकाव्य |
ऋतुसंहारम् |
मुक्तककाव्य |
मालविकाग्निमित्रम्, विक्रमोर्वशीयम्, अभिज्ञानशाकुन्तलम् |
नाटक |
अतः स्पष्ट है, कि `उरुभङ्गम्' कालिदास विरचित नाटक नहीं है।
निम्न में से कौन-सा ग्रन्थ ‘महाभारत’ पर आश्रित नहीं है?
Answer (Detailed Solution Below)
संस्कृत वाङ्गमय Question 10 Detailed Solution
Download Solution PDF‘महाभारत’ के कथानक के अनुसार ‘स्वप्नवासदत्तम्’ का कथानक किसी भी प्रकार महाभारत से सम्बन्धित नहीं है।
उपर्युक्त ग्रन्थों के कथानक इस प्रकार से है-
वेणीसंहारम् |
द्रोपदी के वेणी संहार से सम्बन्धित कथानक का वर्णन है। |
नैषधीयचरितम् |
‘वनपर्व’ में वर्णित ‘नल-दमयन्ती’ की कथानक का वर्णन है। |
स्वप्नवासदत्तम् |
उदयन और वासवदत्ता की प्रणयकथा है। |
शिशुपालवधम् |
इन्द्रप्रस्थ में वर्णित शिशुपाल के वध का कथानक वर्णित है। |
'स्वप्नवासवदत्तम्' का नायक है
Answer (Detailed Solution Below)
संस्कृत वाङ्गमय Question 11 Detailed Solution
Download Solution PDFस्पष्टीकरण-
स्वप्नवासवदत्तम्
- महाकवि भास का प्रसिद्ध संस्कृत नाटक है
- यह छः अंकों का नाटक है।
- भास के नाटकों में यह सबसे उत्कृष्ट है।
- क्षेमेन्द्र के बृहत्कथामंजरी तथा सोमदेव के कथासरित्सागर पर आधारित यह नाटक समग्र संस्कृतवाङ्मय के दृश्यकाव्यों में आदर्श कृति माना जाता है।
- इस नाटक का नामकरण राजा उदयन के द्वारा स्वप्न में वासवदत्ता के दर्शन पर आधारित है।
- नाटक का प्रधान रस शृंगार है तथा हास्य की भी सुन्दर उद्भावना हुई है।
- स्वप्नवासवदत्तम् के नायक पुरुवंशीय राजा उदयन हैं।
- पुरुवंशीय उदयन वत्स राज्य के राजा थे।
- पुरुवंशीय उदयन धीरललित नायक की श्रेणी में आते है।
- राजा उदयन वीर, कला प्रेमी, व्यवहार कुशल है।
इनमें से कौन-सी कालिदास की दूसरी रचना है
Answer (Detailed Solution Below)
संस्कृत वाङ्गमय Question 12 Detailed Solution
Download Solution PDFकालिदास संस्कृत भाषा के महान कवि और नाटककार थे। उन्होंने भारत की पौराणिक कथाओं को आधार बनाकर रचनाएं की, जिसमें भारतीय जीवन और दर्शन के विविध रूप और मूल तत्त्व निरूपित हैं। कालिदास अपनी इन्हीं विशेषताओं के कारण राष्ट्र की समग्र राष्ट्रीय चेतना को स्वर देने वाले कवि माने जाते हैं संस्कृत साहित्य में ही नहीं अपितु समग्र साहित्यिक संसार में उन्हें कविकुलश्रेष्ठ तथा कविशिरोमणि माना जाता है।
कालिदास की रचनायें –
- नाटक – अभिज्ञानशाकुन्तलम्, विक्रमोर्वशीयम् और मालविकाग्निमित्रम्।
- महाकाव्य - रघुवंशम् और कुमारसंभवम्।
- खण्डकाव्य - मेघदूतम् और ऋतुसंहार।
Important Points
नाटक –
- मालविकाग्निमित्रम् कालिदास की पहली रचना है, जिसमें राजा अग्निमित्र और मालविका की प्रणय कथा वर्णित है।
- अभिज्ञानशाकुन्तलम् कालिदास की दूसरी रचना है, जिसमें हास्तिनपुर के राजा दुष्यन्त और कण्व की पालिता पुत्री शकुन्तला की प्रणय कथा का वर्णन हुआ है।
- कालिदास विरचित नाटक विक्रमोर्वशीयम् अनेक रहस्यों से युक्त है, जिसमें राजा पुरूरवा तथा इंद्रलोक की अप्सरा उर्वशी की प्रेमकथा हैं।
महाकाव्य -
इन नाटकों के अलावा कालिदास ने दो महाकाव्यों और दो गीतिकाव्यों की भी रचना की। रघुवंशम् और कुमारसंभवम् उनके महाकाव्यों के नाम है।
- रघुवंशम् में सम्पूर्ण रघुवंश के राजाओं की गाथाएँ हैं।
- कुमारसंभवम् में शिव-पार्वती की प्रेमकथा और कार्तिकेय के जन्म की कहानी है।
खण्डकाव्य -
- मेघदूतम् में एक विरह-पीड़ित निर्वासित यक्ष के द्वारा अपनी यक्षिणी के लिए संदेश प्रेषित करने के लिए दूत के रूप में मेघ को भेजा जाता है।
- ऋतुसंहारम् में सभी ऋतुओं में प्रकृति के विभिन्न रूपों का विस्तार से वर्णन किया गया है।
अतः स्पष्ट है कि अभिज्ञानशाकुन्तलम् कालिदास की दूसरी रचना है।
'पदलालित्य' के लिए प्रसिद्ध है
Answer (Detailed Solution Below)
संस्कृत वाङ्गमय Question 13 Detailed Solution
Download Solution PDFउपर्युक्त कवि एवं उनकी प्रसिद्धियां -
कवि |
प्रसिद्धि |
दण्डी |
पदलालित्य |
भारवि |
अर्थगौरव |
हर्षः |
कविपण्डित |
कालिदासः |
उपमा |
अतः, स्पष्ट है कि 'पदलालित्य' के लिए `महाकवि दण्डी' प्रसिद्ध है।
................. भवभूति की रचना का नाम है।
Answer (Detailed Solution Below)
संस्कृत वाङ्गमय Question 14 Detailed Solution
Download Solution PDFभवभूति की रचना का नाम उत्तररामचरितम् है -
रचनाए |
रचनाकार |
उत्तररामचरितम् |
भवभूति |
उत्तररामायण |
तुलसीदास |
रामचरित |
तुलसीदास |
हर्षचरितदर्शन |
कालीदास |
Additional Information
उत्तररामचरितम् महाकवि भवभूति का प्रसिद्ध संस्कृत नाटक है, जिसके सात अंकों में राम के उत्तर जीवन की कथा है। भवभूति एक सफल नाटककार हैं। उत्तररामचरितम् में उन्होने ऐसे नायक से संबंधित इतिवृत्त का चयन किया है जो भारतीय संस्कृति की आत्मा है।
''अविमारकम्'' नाटक के प्रणेता है-
Answer (Detailed Solution Below)
संस्कृत वाङ्गमय Question 15 Detailed Solution
Download Solution PDFस्पष्टीकरण-
- संस्कृतकाव्य में सर्वश्रेष्ठ नाट्यकारों की शृंखला में भास भी अग्रगण्य कवि है। इनके द्वारा रचित तेरह नाटक हैं।
- इनके इन तेरह नाटकों में अविमारक नामक भी एक रूपक है।
- इस रूपक में छः अंक है।
- इस नाटक में राजकुमार अविमारक और राजकुमारी कुरंगी की प्रणयकथा है।
- अतः उपर्युक्त प्रश्न के अनुसार अविमारक के प्रणेता महाकवि भास है।
Important Points
भास के तेरह नाटक -
- स्वप्नवासवदत्ता
- प्रतिज्ञायौगंधरायण
- दरिद्र चारुदत्त
- अविमारकनाटक
- प्रतिमानाटक
- अभिषेकनाटक
- बालचरित
- पञ्चरात्र
- मध्यमव्यायोग
- दूतवाक्य
- दूतघटोत्कच
- कर्णभार
- उरुभङ्ग
- इन तेरह नाटकों में रामायण आधारित केवल दो नाटक हैं- प्रतिमानाटक और अभिषेकनाटक
- महाभारत आधारित केवल छः नाटक हैं - पञ्चरात्र, मध्यमव्यायोग, दूतवाक्य, दूतघटोत्कच, कर्णभार और उरुभङ्ग।